By heygobind Date June 17, 2020

गर्भवती महिलायें ग्रहण के प्रभाव से बचने हेतु रखें इन बातों का ध्यान महर्षि वेदव्यासजी कहते हैं कि रविवार को सूर्यग्रहण अथवा सोमवार को चन्द्रग्रहण हो तो चूड़ामणियोग होता है । अन्य वारों में सूर्यग्रहण में जो पुण्य होता है उससे करोड़ गुना पुण्य चूड़ामणि योग में कहा गया है । इस वर्ष 21 जून (रविवार) को होने वाला सूर्यग्रहण भारी विनाशक योग का सर्जन कर रहा है । यह देश व दुनिया ग्रहणकाल में अगर सावधानी रही तो थोड़े ही समय में बहुत पुण्यमय, सुखमय जीवन होगा, पर अगर थोड़ी सी असावधानी हुई तो हुई तो बड़े दुःख का सामना करना पड़ सकता हैं।
अब बात करते हैं गर्भवती महिलाओं के बारे में
गर्भवती महिला के लिए ग्रहण में कुछ नियम विशेष पालनीय होते हैं । इन नियमों को कपोलकल्पित बातें अथवा अंधविश्वास नहीं मानना चाहिए, क्योंकि इनके पीछे बहुत से शास्त्रोक्त कारण होते हैं । ग्रहण के प्रभाव से वातावरण, पशु-पक्षियों के आचरण आदि में परिवर्तन दिखाई देते हैं इससे यह स्पष्ट है कि मानवीय शरीर तथा मन के क्रिया-कलापों में भी परिवर्तन होते हैं । ग्रहणकाल में कुछ कार्य करने से बेहद लाभ होता और कुछ कार्य करने से अत्याधिक हानि भी होती है। न करने योग्य कार्यों को सभी न भी समझ सकें परंतु उनका पालन करना जरूरी माना जाता है इसलिए हमारे हितैषी ऋषि-मुनियों के द्वारा इन कार्यों का नियम के रूप में समाज में प्रचलन किया गया है। ध्यान रहे, इन नियमों से गर्भवती को भलीभाँति अवगत करायें परंतु भयभीत न करें क्योंकि भय का गर्भ पर विपरीत असर पड़ता है|

गर्भवती माताओं-बहनों के लिए ग्रहणकाल में विशेष ध्यान रखने योग्य ...
गर्भिणी ग्रहणकाल से ४ घंटे पूर्व इस प्रकार अन्न-पान करें कि ग्रहण के दौरान शौचादि के लिए जाना न पड़े ।
गर्भिणी अगर चश्मा लगती हो और चश्मा लोहे का हो तो उसे ग्रहणकाल तक निकाल देना चाहिए। बालों पर लगी पिन या नकली गहने भी उतार दें ।
ग्रहणकाल में गले में तुलसी की माला या चोटी में कुश धारण कर लें । ग्रहण के समय गर्भवती चाकू, कैंची, पेन, पैन्सिल जैसी नुकीली चीजों का प्रयोग न करे क्योंकि इससे शिशु के होंठ कटने की सम्भावना होती है ।
सूई का उपयोग अत्यंत हानिकारक है, इससे शिशु के हृदय में छिद्र हो जाता है । किसी भी लोहे की वस्तु, दरवाजे की कुंडी आदि को स्पर्श न करें, न खोले और न ही बंद करें । ग्रहणकाल में सिलाई, बुनाई, सब्जी काटना या घर से बाहर निकलना व यात्रा करना हानिकारक है।
ग्रहण के समय भोजन करने से मधुमेह (डायबिटीज) का रोग हो जाता है या बालक बीमार होता है।

ग्रहणकाल में पानी पीने से गर्भवती स्त्री के शरीर में पानी की कमी (डिहाइड्रेशन) हो जाती है, जिस कारण बालक की त्वचा सूख जाती है ।
लघुशंका या शौच जाने से बालक को कब्जियत का रोग होता है ।
गर्भवती वज्रासन में न बैठे अन्यथा शिशु के पैर कटे हुए हो सकते हैं । शयन करने से शिशु अंधा या रोगी हो सकता है । ग्रहणकाल में बर्तन आदि घिसने से शिशु की पीठ पर काला दाग होता है ।
ग्रहणकाल के दौरान मोबाइल का उपयोग आंखों के लिए अधिक हानिकारक है । उस दौरान निकले रेडियेशन से गर्भस्थ शिशु के विकास में रुकावट आ सकती है । कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार इसके कारण शिशु तनाव में भी जा सकता है ।

गर्भवती ग्रहणकाल में अपनी गोद में एक सूखा हुआ छोटा नारियल (श्रीफल) लेकर बैठे और ग्रहण पूर्ण होने पर उस नारियल को नदी अथवा अग्नि में समर्पित कर

ग्रहण से पूर्व देशी गाय के गोबर व तुलसी-पत्तों का रस (रस न मिलने पर तुलसी-अर्क का उपयोग कर सकते हैं) का गोलाई से पेट पर लेप करें । देशी गाय का गोबर न उपलब्ध हो तो गेरूमिट्टी का लेप करें अथवा शुद्ध मिट्टी का ही लेप कर लें । इससे ग्रहणकाल के दुष्प्रभाव से गर्भ की रक्षा होती है

गर्भिणी को घर के भीतरी भाग में जाकर शान्ति होम आदि कार्यों में लगकर चन्द्र तथा सूर्य की ग्रह द्वारा मुक्ति की प्रार्थना करनी चाहिए |
महर्षि वेदव्यासजी कहते हैं -सूर्यग्रहण के समय किया हुआ जप 10 लाख गुना फलदायी होता है । गर्भिणी सम्पूर्ण ग्रहण काल में कमरे में बैठकर यज्ञों में सर्वश्रेष्ठ भगवन्नाम जप रूपी यज्ञ करें । ॐकार का दीर्घ उच्चारण करें ।

ग्रहण काल में भोजन बनाना, साफ-सफाई आदि घरेलू काम, पढ़ाई-लिखाई, कम्प्यूटर वर्क, नौकरी या बिजनेस आदि से सम्बन्धित कोई भी काम नहीं करने चाहिए क्योंकि इस समय शारीरिक और बौद्धिक क्षमता क्षीण होती है । ग्रहणकाल में घर से बाहर निकलना, यात्रा करना सूर्य के दर्शन करना निषिद्ध है ।

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