युधिष्ठिर जी ने कहा "हे जनार्दन! ज्येष्ठ मास के शुक्लपक्ष में जो एकादशी आती है, कृपया उसका मार्गदर्शन कीजिये। भगवान श्री कृष्ण जी बोले: हे युधिष्ठिर "धर्मात्मा श्री व्यास जी ने जो सम्पूर्ण शास्त्रों के वेद वेदांगों के पारंगत है उन्होंने निर्जला एकादशी का महत्व इस प्रकार कहा।श्री वेदव्यास जी ने कहा "जो दोनों ही पक्षों शुक्लपक्ष और कृष्णपक्ष की एकादशी के दिन भोजन नहीं करते। द्वादशी के दिन स्नान करके और पुष्पों से श्री हरि का पूजन करके फिर जो भी नित्यकर्म होता है, उसको समाप्त करने के पश्चात ब्राह्मणों को भोजन कराएं और उसके पश्चात स्वयं भोजन करें। राजन जननाशौच और मरणाशौच में भी एकादशी के दिन भोजन नहीं करना चाहिए।
यह सुनकर भीमसेन बोले: "हे परम् पितामह वेदव्यास जी "मैं आपसे एक अपनी बात कहता हूं, मैं जब एक बार भोजन करने के पश्चात भी व्रत नहीं रख सकता फिर पुरे दिवस किस प्रकार से उपवास रख सकूंगा। मेरे उदर में वृक नाम के अग्नि सदा ही जलती रहती हैं, जब मैं बहुत ही अधिक भोजन करता हूं तब ये शांत होती है इसलिए हे महामुनि हे वेदव्यास जी मैं वर्ष भर में केवल एक ही व्रत रख सकता हूं जिससे स्वर्ग की प्राप्ति सुलभ हो और मुझे व्रत करने का पुण्य भी मिल सके, तो कोई एक ऐसा व्रत हो वो आप मुझको बताएं जिसका में यथोचित रूप से हर प्रकार से पालन कर सकूँ।
व्यासजी ने कहा : भीम ! ज्येष्ठ मास में जब सूर्य वृष राशि पर हो या मिथुन राशि में हो, और शुक्लपक्ष में जो एकादशी आती हैं, उसको पुरे यत्न से निर्जला व्रत रखो। जल का उपयोग केवल कुल्ला, आचमन में करना चाहिए और उसको किसी भी प्रकार से मुँह के अंदर न ले जाए अन्यथा व्रत भंग हो जाता हैं। एकादशी के दिन सूर्य उदय से लेकर दूसरे दिन के सूर्य उदय तक मनुष्य यदि जल का त्याग कर दें तो वह पूर्ण माना जाता है।
उसके पश्चात द्वादशी को सुबह स्नान करने के बाद ब्राह्मणों को विधिपूर्वक दान आदि करें। यदि संभव हैं तो ब्राह्मणों को भोजन करवाए, और उसके पश्चात भोजन करें। चक्र और गदा धारण करनेवाले भगवान केशव ने मुझसे कहा था कि "यदि मानव सब कुछ छोड़कर केवल मेरी शरण में आ जाए और निराहार रहकर एकादशी का व्रत करें तो वह सब पापों से मुक्त हो जाता है। जो भी एकादशी का व्रत करता है, उसको विशालकाय विकराल आकृति और काले रंग वाले यमदूत नहीं दिखाई देते। व्रत करने वाले का जब भी अंतकाल होता है सौम्य स्वभाव वाले पीतांबर धारी साथ में सुदर्शन धारण करने वाले विष्णुदूत आखिर इस वैष्णव पुरुष को भगवान विष्णु के धाम में ले जाते हैं ।