नवरात्रि महिषासुर मां दुर्गा का त्यौहार हैं।

By heygobind Date March 30, 2022

नवरात्रि महिषासुर मां दुर्गा का त्यौहार हैं। उनकी स्तुति इस प्रकार की जाती है।
सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते।
अर्थ: सर्वमंगल सभी वस्तु में मंगल-रूप, कल्याण-दायिनी, शरणागतों का रक्षण करनेवाली, सर्व-पुरुषार्थ साध्य करानेवाली, हे त्रिनयने, गौरी मां, हे नारायणी! आपको मेरा बारम्बार नमस्कार हैं।
  श्री दुर्गासप्तशती में माँ दुर्गा के तीन प्रमुख रुप हैं। 

1. श्री सरस्वती देवी, जिनको  गति का तत्त्व के प्रतीक माना जाता हैं।
2. श्री महालक्ष्मी जी  जिनको  ‘दिक’ अर्थात ‘दिशा’ के तत्त्व का प्रतीक माना जाता हैं।
3. श्री महाकाली जिनको काल तत्त्व का प्रतीक माना जाता हैं।

नवरात्री वर्ष में विशेष रूप से दो बार मनाई जाती हैं। 
१. चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से चैत्र शुक्ल नवमी तक मनाई जाती हैं। 
२. शरद में आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से आश्विन शुक्ल नवमी तक मनाई जाती हैं। 

नवरात्रि का इतिहासश्री राम जी से रावण का वध हो इसलिए नारद जी श्री राम जी से नवरात्री का व्रत का अनुष्ठान करने का निवेदन किया। नवरात्री व्रत को पूर्ण करने के बाद श्री रामजी ने लंका पर आक्रमण करके विजय प्राप्त की।
देवी माँ ने महिषासुर नामक असुर के साथ नौ दिन "प्रतिपदा से नवमी" तक भयंकर युद्ध किया, और अंत में नवमी की रात्रि को महिषासुर वध किया। 

नवरात्रि की काल अवधि में महा-बलशाली दैत्यों का वध कर देवी दुर्गा महाशक्ति बनी थी। सभी देवताओं ने देवी दुर्गा स्तुति की। उस समय देवी मां ने वचन दिया कि
"इत्थं यदा यदा बाधा दानवोत्था भविष्यति।"
*तदा तदाऽवतीर्याहं करिष्याम्यरिसंक्षयम् ।।
मार्कंडेयपुराण 91.51*
भावार्थ: जब जब दानवों द्वारा किसी को बाधा आएगी तो माँ अवतार लेकर उनका विनाश करेगी। नवरात्री में नौ दिन तक माँ शक्ति की आराधना उपासना करनी चाहिए "असुषु रमन्ते इति असुर:" अर्थात् " जो सदैव सांसर के भोग विलास में लीन रहता हैं वो असुर कहलाता हैं। 

श्री दुर्गासप्तशति के एक श्लोक में कहा गया हैशरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे ।**सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमो:स्तुते ।।**– श्री दुर्गासप्तशती, अध्याय 11.12
*सभी की दुःख को दूर करनेवाली हे देवी नारायणी! आपको मेरा नमस्कार है। इससे हमारी और भविष्य में समाज की आसुरी वृत्ति में परिवर्तन होकर सभी सात्त्विक बन सकते हैं । यही कारण है कि, देवी तत्त्व के अधिकतम कार्यरत रहने की कालावधि अर्थात नवरात्रि विशेष रूप से मनायी जाती है।
नौ दिन में घट की स्थपना के बाद पंचमी, षष्ठी, अष्टमी एवं नवमी का विशेष महत्त्व होता हैं, पंचमी की दिन देवी के नौ रूपों में से एक श्री ललिता देवी अर्थात महात्रिपुर सुंदरी का व्रत होता है।  शुक्ल अष्टमी एवं नवमी ये महातिथियां हैं। इन तिथियों पर चंडीहोम करते हैं, नवमी पर चंडीहोम के साथ बलि समर्पण करते हैं ।

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