कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष में करवा चौथ का व्रत (karva chauth) आता हैं. ये उत्तर भारत में अधिकतर स्त्रियों को लोकप्रिय हैं और पंजाब में तो मुख्य त्यौहार हैं. अपने अटल सुहाग के लिए इस व्रत को रखा जाता हैं. अपने पति की आयु, स्वास्थ्य और मंगलकामना के लिए करवा चौथ का व्रत रखा जाता हैं.
वामन पुराण में भी करवा चौथ व्रत का वर्णन आता हैं. इस दिन जो भी इस व्रत को रखता हैं वो सुबह उठकर स्नान आदि करके अपने पति के प्रति मंगल भाव लेकर व्रत करने का संकल्प करती हैं. इस व्रत में पार्वती, शिव, गणेश कार्तिकेय तथा चंद्रमा का पूजन करने का विधान होता है.
जो भी इस व्रत को रखता हैं वो चंद्रोदय के बाद चंद्रमा को अर्घ्य देने और दर्शन कर करके ही जल और भोजन ग्रहण करती हैं. पूजा के पश्चात तांबे या मिट्टी के करवे में उड़द , चावल की दाल सुहाग की सामग्री जैसे- शीशा कंघी चूड़ियां सिंदूर, रिबन व रुपया रखकर दान करना चाहिए तथा जो भी घर में बुजुर्ग और सास आदि के पांव छूकर फल मेवा आदि सुहाग की सारी सामग्री उनके चरणों में रखनी चाहिए.
करवा चौथ पूजन विधि:
सफेद मिट्टी या बालू की वेदी पर प्रभु शिव-पार्वती, स्वामी कार्तिकेय जी, गणेश भगवान और चंद्रमा की स्थापना करनी चाहिए. इसके पश्चात ही इन देवताओं की पूजा भी करनी चाहिए.
इस दिन करवों में लड्डू आदि का नैवेद्य रखकर उसको अर्पित करना चाहिए. लोटे और वस्त्र और एक विशेष करवा दक्षिणा के रूप में अर्पित करना चाहिए. करवा चौथ व्रत की जो भी कथा क्षेत्र अनुसार पढ़ें या सुनें.
शाम को चंद्रमा के उदय होने के बाद चंद्रमा का पूजन और उनको अर्घ्य दे. इसके बाद ब्राह्मण, सुहागिन स्त्रियों और पति के माँ पिता को भोजन कराएं. भोजन करने के बाद ब्राह्मणों को दक्षिणा अवश्य देना चाहिए.
अपनी सासू माँ को एक लोटा, वस्त्र और विशेष करवा भेंट कर आशीर्वाद अवश्य लेना चाहिए. यदि किसी बहन के सास जीवित न हों तो उनके तुल्य किसी अन्य स्त्री को भेंट करें.
करवा चौथ की कथा
पुरे भारत में करवा चौथ की अलग अलग कथा हैं इसमें जो प्रमुख हैं वो इस प्रकार हैं. जो कथा सबसे ज्यदा प्रचलित है वो वीरावती की कथा. रानी वीरावती अपने सात भाइयों में अकेली बहन थी. करवा चौथ के दिन वो अपने भाइयों के पास थी और जब उसने ये व्रत रखा थो उसको बहुत कठिनाई हुई व्रत रखने में, उसको केवल चंद्रमा देखने के बाद ही व्रत खोलना चाहिए था. उसको इस प्रकार कष्ट में देखकर उसके भाइयों ने धोखे से उसका व्रत तुड़वा दिया. और इस प्रकार उसका व्रत भंग माना गया. लेकिन उसके श्रदा भाव को देखकर माँ पार्वती की कृपा से उन्होंने ये व्रत को विधिवत पूरा किया और फिर गणेश जी की कृपा प्राप्त कर अपने पति की जिंदगी वापस लेकर आईं.
इस बार करवा चौथ का पूजा का समय शाम को 5.55 से शुरू होकर शाम 7:09 तक होगा. लेकिन हर शहर में थोडा थोडा समय आगे पीछे हो सकता हैं. शाम को 08:10 से 8.17 थे चंद्रमा उदय होने का समय हैं.
आपकी थाली में ये पूजा सामग्री अवश्य होनी चाहिए: चन्दन, चंदन, शहद, अगरबत्ती, पुष्प, कच्चा दूध, शकर, शुद्ध घी, दही, मिठाई, गंगाजल, कुंकुम, अक्षत चावल, सिंदूर, मेहंदी, महावर, कंघा, बिंदी, चुनरी, चूड़ी, बिछुआ, मिट्टी का टोंटीदार करवा व ढक्कन, दीपक, रुई, कपूर, गेहूं, शकर का बूरा, हल्दी, पानी का लोटा, गौरी बनाने के लिए पीली मिट्टी, लकड़ी का आसन, चलनी, आठ पूरियों की अठावरी, हलुआ, दक्षिणा के लिए पैसे, कथा की पुस्तक और पूजा का पाना।