देवउठनी एकादशी 2020 | दुर्लभ फल प्राप्ति का व्रत

By heygobind Date November 22, 2020

प्रभु श्रीकृष्णजी ने कहा : हे अर्जुन! मैं तुमको मुक्ति देनेवाली कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की ‘प्रबोधिनी/ देवउठनी एकादशी ’ के सम्बन्ध में संत नारद और ब्रह्माजी के बीच हुए वार्तालाप को सुनाता हूँ । एक समय नारद जी ने ब्रह्मजी से प्रश्न किया "प्रबोधिनी एकादशी देवउठनी एकादशी’ के व्रत का क्या फल होता है, कृपया आप मुझको विस्तार से बताएं।
ब्रह्माजी ने कहा : हे पुत्र ! जिस किसी वस्तु का त्रिलोक में मिलना बहुत दुष्कर है, वो वस्तु भी कार्तिक माह के शुक्लपक्ष की ‘प्रबोधिनी/ देवउठनी एकादशी’ के व्रत से मिल जाता हैं । देवउठनी एकादशी के व्रत के प्रभाव से पूर्व जन्म के किये हुए अनेक पाप कर्म भी क्षणभर में नष्ट हो जाते है ।
हे नारद ! जो भी मनुष्य श्रद्धापूर्वक इस एकादशी के दिन थोड़ा बहुत भी पुण्य करते हैं, उनका वह पुण्य अक्षय हो जाता और पर्वत के समान अटल हो जाता है । उनके पितृ भी विष्णुलोक में जाते हैं । इस व्रत के प्रभाव से ब्रह्महत्या आदि महान भयकर पाप भी ‘देवउठनी एकादशी’ के दिन रात्रि को जागरण करने से नष्ट हो जाते हैं।
हे नारद ! मनुष्य को भगवान की प्रसन्नता के लिए कार्तिक मास की इस एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए । जो मनुष्य इस एकादशी व्रत को करता है, वह योगी, धनवान, इन्द्रियों को जीतनेवाला होता है, क्योंकि एकादशी भगवान श्री विष्णु जी को अत्यंत प्रिय है ।
‘प्रबोधिनी/ देवउठनी एकादशी’ एकादशी के दिन जो मनुष्य श्री भगवान की प्राप्ति के लिए जप-तप, दान यज्ञ (भगवान्नामजप भी परम यज्ञ है। ‘यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि’ । यज्ञों में जपयज्ञ मेरा ही स्वरुप है।’ - श्रीमद्भगवदगीता ) आदि करते हैं, उन्हें अक्षय पुण्य फल की प्राप्ति होती हैं।
इसलिए हे पुत्र ! तुमको भी ‘प्रबोधिनी एकादशी’ विधिपूर्वक श्री विष्णु भगवान की पूजा करनी चाहिए । ‘प्रबोधिनी एकादशी के दिन मनुष्य को ब्रह्ममुहूर्त में उठकर व्रत का संकल्प करना चाहिए और श्री विष्णु जी की पूजा करनी चाहिए । रात के समय श्री प्रभु के समीप नृत्य, गीत, कथा कीर्तन करते हुए रात्रि व्यतीत करनी चाहिए।
‘प्रबोधिनी/ देवउठनी एकादशी’ के दिन पुष्प, धूप आदि से श्री प्रभु जी की आराधना करनी चाहिए, उनको अर्ध्य देना चाहिए । इसका फल तीर्थ और दान आदि से करोड़ गुना अधिक होता है।
जो भी भगवान् को गुलाब के फूल से, अशोक के फूलों से, सफेद - लाल कनेर के फूलों से, दूर्वादल से, शमीपत्र से, चम्पक पुष्प से श्री भगवान विष्णु की पूजा करते हैं, वे संसार के आवागमन के चक्र से छूट जाते हैं ।
इस प्रकार रात में भगवान की पूजा करके प्रात:काल स्नान के पश्चात् भगवान की प्रार्थना करते हुए श्री विष्णु भगवान् की पूजा करनी चाहिए और सदाचारी व पवित्र ब्राह्मणों को दक्षिणा देकर अपने व्रत को छोड़ना चाहिए ।
जो भी ‘प्रबोधिनी/ देवउठनी एकादशी’ के दिन विधिपूर्वक व्रत करते हैं, उन्हें अनन्त सुख मिलता है और अंत में स्वर्ग को जाते हैं ।

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