चन्द्र ग्रहण या सूर्य ग्रहण के समय पूर्णरूप से संयम रखकर जप-ध्यान करने से कई गुना फल की प्राप्ति होती है। जो श्रेष्ठ साधक उस समय उपवास पूर्वक ब्राह्मी घृत का स्पर्श करके ॐ नमो नारायणाय मंत्र का आठ हजार जप करने के पश्चात ग्रहण शुद्धि होने पर उस घृत को पी ले। ऐसा करने से वह मेधा , धारणशक्ति, कवित्व शक्ति तथा वाक्सिद्धि प्राप्त कर लेता है।
सूर्यग्रहण और चन्द्रग्रहण के समय भोजन करने वाला मनुष्य जितने भी अन्न के दाने को खाता है, वह उतने वर्षों तक अरुन्तुद नरक में वास करता है।
सूर्यग्रहण में ग्रहण चार प्रहर लगभग 12 घंटे पूर्व और चन्द्रग्रहण में तीन प्रहर लगभग 9 घंटे पूर्व भोजन नहीं करना चाहिए। बूढ़े बालक और रोगी डेढ़ प्रहर लगभग साढ़े चार घंटे पूर्व तक खा सकते हैं।
ग्रहणवेध के पहले जिन-जिन पदार्थों में कुश या फिर तुलसी की पत्तियाँ डाल दी जाती हैं, वे पदार्थ दूषित नहीं होते। पके हुआ अन्न का त्याग करके उसको गाय या कुत्ते को डालकर नया भोजन बनाना चाहिए।
ग्रहणवेध के प्रारम्भ में तिल या कुश मिश्रित जल का उपयोग भी अत्यावश्यक परिस्थिति में ही करना चाहिए और ग्रहण शुरू होने से अंत तक अन्न या जल बिलकुल नहीं लेना चाहिए।
ग्रहण के स्पर्श के समय स्नान, मध्य के समय होम, देव-पूजन और श्राद्ध तथा अंत में सचैल (वस्त्रसहित) स्नान करना चाहिए। बहनें सिर धोये बिना भी स्नान कर सकती हैं।
ग्रहण पूर्ण होते ही सूर्य या चन्द्र, जिसका ग्रहण हो उसका शुद्ध बिम्ब देखकर भोजन करना चाहिए।
ग्रहण काल में स्पर्श किये हुए वस्त्र आदि की शुद्धि हेतु बाद में उसे धो देना चाहिए तथा स्वयं भी वस्त्र सहित स्नान करना चाहिए।
ग्रहण के स्नान में कोई मंत्र नहीं बोलना चाहिए इसका विशेष ध्यान रखें। ग्रहण के स्नान में गरम जल की अपेक्षा ठंडाजल और ठंडे जल भी दूसरे के हाथ से निकाले हुए जल की अपेक्षा अपने हाथ से निकाला हुआ, निकाले हुए की अपेक्षा भी जमीन में भरा हुआ, भरे हुए की अपेक्षा भी बहता हुआ और साधारण बहते हुए की भी अपेक्षा सरोवर का एवं सरोवर की अपेक्षा भी नदी का, अन्य नदियों की अपेक्षा गंगा का और गंगा की अपेक्षा भी समुद्र का जल बहुत पवित्र माना जाता है।
ग्रहण के समय गायों को घास और पक्षियों को अन्न, एवं जरूरतमंदों को वस्त्रदान से अनेक गुना पुण्य की प्राप्ति होती है।
ग्रहण के दिन पत्ते तिनके, लकड़ी या फूल नहीं तोड़ने चाहिए। बाल या वस्त्र नहीं निचोड़ने चाहिए व दंतधावन भी नहीं करना चाहिए। ग्रहण के समय ताला खोलना, सोना, मल-मूत्र का त्याग, मैथुन और भोजन ये सारे कार्य वर्जित हैं।
ग्रहण के समय कदापि कोई भी शुभ व नया कार्य शुरू नहीं करना चाहिए।
ग्रहण के समय सोने से रोगी, मल त्यागने से कीड़ा, स्त्री प्रसंग करने से सूअर और उबटन लगाने से व्यक्ति कोढ़ी होता है। जो भी गर्भवती महिला हो उसको ग्रहण के समय विशेष सावधान रहना चाहिए।
भगवान श्री वेदव्यासजी ने परम हितकारी वचन कहे हैं- "सामान्य दिन से चन्द्रग्रहण में किया गया पुण्यकर्म जप, ध्यान, दान आदि एक लाख गुना और सूर्यग्रहण में दस लाख गुना फलदायी होता है। यदि गंगाजल पास में हो तो चन्द्रग्रहण में एक करोड़ गुना और सूर्यग्रहण में दस करोड़ गुना फलदायी होता है"।
किसी भी ग्रहण के समय इष्टमंत्र अथवा भगवन्नाम-जप अवश्य करना चाहिए।
किसी भी ग्रहण के अवसर पर दूसरे का अन्न खाने से बारह वर्षों का एकत्र किया हुआ सब पुण्य नष्ट हो जाता है स्कन्द पुराण के अनुसार।
भूकंप और ग्रहण के अवसर पर पृथ्वी को खोदना नहीं चाहिए देवी भागवत के अनुसार।
महत्व पुरण तिथी