कामदा एकादशी | Kamada Ekadashi

By heygobind Date April 18, 2021

कामदा एकादशी, Kamada Ekadashi युधिष्ठिर ने कहा: हे वासुदेव! आपको बारम्बार नमस्कार! कृपया करके आप हमको बताइये कि चैत्रमाह के शुक्ल पक्ष में कौनसी एकादशी आती हैं?श्रीकृष्णजी बोले: हे राजन् ! आप एकाग्र होकर यह कथा सुनो, जिसको वशिष्ठजी ने राजा श्री दिलीप के प्रश्न पूछने पर कहा था ।वशिष्ठजी ने कहा: हे राजन्! चैत्र के शुक्ल पक्ष में कामदा एकादशी आती हैं। यह एकादशी बहुत ही परम पुण्यमयी होती है। प्राचीनकाल में  नागपुर नाम का एक सुन्दर राज्य था, जिधर सोने के महल बन रखे थे। नागपुर नगर में पुण्डरीक नामक महा-भयंकर नाग निवास करता था । पुण्डरीक नाम का वह नाग उन दिनों नागपुर में राज्य करता था।
किन्नर, गन्धर्व,  और अप्सराएँ भी उस नगर में रहती थी। उस राज्य में एक श्रेष्ठ अप्सरा जिसका नाम ललिता था, रहती थी। उसका पति ललित नामवाला गन्धर्व था। दोनों पति-पत्नी के रुप में बहुत सुखी थे। ललिता के हृदय में सदैव ही पति की ही मूर्ति बसी रहती थी और ललित के हृदय में भी सुन्दरी ललिता का नित्य निवास था ।एक समय की बात है। नागराज पुण्डरीक अपनी राजसभा में बैठकर गीत सुन रहा था।  उसी समय ललित का गान भी हो रहा था सहयोंगवश उस समय उसके  साथ उसकी पत्नी ललिता नहीं थी। गाते-गाते उसको ललिता का स्मरण हो गया। और उस समय नृत्य करते हुए उसके पैरों की गति रुक गयी और जीभ भी लड़खड़ाने लगी।
नागों में श्रेष्ठ कर्कोटक को ललित के मन का पता चल गया, अत: उसने महाराज पुण्डरीक को उसके पैरों की गति रुकने और गान में त्रुटि होने की बात बता दी । नागों में श्रेष्ठ कर्कोटक की बात सुनकर महाराज पुण्डरीक की आँखे क्रोध से लाल हो गयीं । उसने गाते हुए ललित को शाप दे दिया : हे दुर्बुद्धे! तूने मेरा अपमान किया, इसलिए जा राक्षस हो जा ।’नागराज पुण्डरीक के इतना कहते ही वह गन्धर्व राक्षस हो गया। विकराल आँखें, भयंकर मुख और देखनेमात्र से भय उपजानेवाला रुप-ऐसा राक्षस होकर वह कर्म का फल भोगने लगा।ललिता ने जब अपने पति की इस विकराल आकृति को देखा तो मन ही मन बहुत चिन्तित हुई । उसको भारी दु:ख हुआ और वो वह कष्ट पाने लगी। सोचने लगी: ‘क्या करुँ? कहाँ जाऊँ? मेरे पति पाप से कष्ट पा रहे हैं…’वह रोती हुई घने जंगलों में पति के पीछे पीछे घूमने लगी । वन में उसे एक सुन्दर आश्रम दिखायी दिया, जहाँ एक मुनि शान्त बैठे हुए थे । किसी भी प्राणी के साथ उनका वैर विरोध नहीं था । ललिता शीघ्रता के साथ वहाँ गयी और मुनि को प्रणाम करके उनके सामने खड़ी हुई । मुनि बड़े दयालु थे । उस दु:खिनी को देखकर वे इस प्रकार बोले : ‘शुभे ! तुम कौन हो ? कहाँ से यहाँ आयी हो? मेरे सामने सच सच बताओ ।’ललिता ने कहा : महामुने ! वीरधन्वा नामवाले एक गन्धर्व हैं । मैं उन्हीं महात्मा की पुत्री हूँ । मेरा नाम ललिता है । मेरे स्वामी अपने पाप दोष के कारण राक्षस हो गये हैं । उनकी यह अवस्था देखकर मुझे चैन नहीं है । ब्रह्मन् ! इस समय मेरा जो कर्त्तव्य हो, वह बताइये । विप्रवर! जिस पुण्य के द्वारा मेरे पति राक्षसभाव से छुटकारा पा जायें, उसका उपदेश कीजिये ।ॠषि बोले : भद्रे ! इस समय चैत्र मास के शुक्लपक्ष की ‘कामदा’ नामक एकादशी तिथि है, जो सब पापों को हरनेवाली और उत्तम है । तुम उसीका विधिपूर्वक व्रत करो और इस व्रत का जो पुण्य हो, उसे अपने स्वामी को दे डालो । पुण्य देने पर क्षणभर में ही उसके शाप का दोष दूर हो जायेगा ।राजन् ! मुनि का यह वचन सुनकर ललिता को बड़ा हर्ष हुआ । उसने एकादशी को उपवास करके द्वादशी के दिन उन ब्रह्मर्षि के समीप ही भगवान वासुदेव के (श्रीविग्रह के) समक्ष अपने पति के उद्धार के लिए यह वचन कहा: ‘मैंने जो यह ‘कामदा एकादशी’ का उपवास व्रत किया है, उसके पुण्य के प्रभाव से मेरे पति का राक्षसभाव दूर हो जाय ।’वशिष्ठजी कहते हैं : ललिता के इतना कहते ही उसी क्षण ललित का पाप दूर हो गया । उसने दिव्य देह धारण कर लिया । राक्षसभाव चला गया और पुन: गन्धर्वत्व की प्राप्ति हुई ।नृपश्रेष्ठ ! वे दोनों पति पत्नी ‘कामदा’ के प्रभाव से पहले की अपेक्षा भी अधिक सुन्दर रुप धारण करके विमान पर आरुढ़ होकर अत्यन्त शोभा पाने लगे । यह जानकर इस एकादशी के व्रत का यत्नपूर्वक पालन करना चाहिए।
मैंने लोगों के हित के लिए तुम्हारे सामने इस व्रत का वर्णन किया है । ‘कामदा एकादशी’ ब्रह्महत्या आदि पापों तथा पिशाचत्व आदि दोषों का नाश करनेवाली है । राजन् ! इसके पढ़ने और सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है।
Kamada Ekadashi

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