कई साल पहले की बात है। एक युवक था जिसका नाम आनंद था। वो थोड़ा आलसी था और कुछ ज्यादा काम धाम नहीं करता था। एक दिन वो घर से निकल गया और चलते चलते किसी आश्रम में चला गया। उसको उधर सहज में ही भोजन मिल गया। आनंद को उधर बहुत ही अच्छा लगा। उसने गुरूजी से आश्रम में रहने की इच्छा कही और गुरूजी ने उसको रहने की अनुमति दे दी। आनंद बड़े ही अच्छे से आश्रम में रहने लगा थोड़ा बहुत आश्रम के कार्य कर देता था साफ़ सफाई आदि। गुरूजी ने उसको भगवान् की पूजा सीखा दी थी जो वो बड़े ही मन से रोज करता था। आनंद बड़े ही भावपूर्वक भगवान् की भजन गाया करता था।
उसको अब किसी भी प्रकार का दुख नहीं था उसको समय से भोजन मिल जाया करता था, और आनंद बड़े मजे से आश्रम में अपना समय व्यतीत कर रहा था।
एक दिन एकादशी आ गयी, उसको जब सुबह नाश्ता नहीं मिला थो उसने गुरूजी से कहा और गुरूजी ने कहा बेटा आज तो एकादशी हैं और इस दिन तो सबको उपवास रखना चाहिए इसलिए तुम भी आज उपवास रखो।
आनंद ने कहा "गुरूजी मुझ से भूख सहन नहीं होती और मेरा उपवास रख पाना बहुत ही मुश्किल हैं इसलिए आप मुझे भोजन की अनुमति दीजिये। "
गुरूजी ने कहा "बेटा ठीक हैं यदि तुम उपवास नहीं रखना चाहते हो तो कोई बात नहीं पर तुमको अपना भोजन स्वयं बनाना होगा।
आनंद ने कहा "गुरूजी हाँ आज मै अपना भोजन स्वयं बना लूंगा।
गुरूजी ने कहा "बेटा जो भी भोजन बनाओ उसको रामजी को अवश्य भोग लगाना उधर जो नदी के पार मंदिर हैं उसमे जाकर, हम जो भी भोजन बनाते हैं उसको रामजी को अवश्य भोग लगाते हैं। आनंद ने कहा " जी गुरूजी। आनंद ने आटा घी तेल सब्जी से बड़े ही मुश्किल से भोजन तैयार किया। और उसको भोग लगाने के लिए मंदिर ले गया।
आनंद भजन गाने लगा
आओ भोग लगाओ प्यारे राम जी …
भिलनी के बैर सुदामा के तंडुल
रूचि रूचि भोग लगाओ प्यारे राम जी
आओ मेरे राम जी, भोग लगाओ जी
मेरे प्रभु श्री राम जी आइए, श्रीराम जी आइए मेरे भोजन का भोग लगाओ जी....
उधर कोई भी नहीं आया, आनंद तो बहुत ही बैचैन हो गया और उसको भूख भी बहुत लग रही थी। आनंद बहुत ही भोला मानस था संसार उसके भीतर नहीं था। वो प्रभु जी की राह देखने लग गया। प्रभु राम जी आये ही नहीं पर उसको गुरूजी की बात पर विश्वास था।
उसने बड़े ही अंतर्मन से कहा की प्रभु मुझे पता हैं की आप इसलिए नहीं आ रहे हो की आज भोजन अच्छा नहीं बना। पर प्रभुजी मुझे तो भोजन बनाना आता ही नहीं मै सीख लूंगा पर आप आ जाये।
प्रभु जी... ... आज आश्रम में भी कुछ नही बना रखा है, सबका एकादशी का व्रत है, इसलिए आज आप ये ही भोजन कर लो।
और श्री राम जी आज अपने इस भक्त पर बहुत ही प्रसन्न हुए और साक्षत दर्शन दे दिए माता सीता जी के साथ।
आनंद बड़े ही भाव से प्रभु श्री राम जी और सीता जी को प्रणाम किया और साथ में असमंजस में पड़ गया की भोजन तो एक के लिए बनाया हैं पर इधर तो प्रभु जी माँ सीता जी के साथ आ गए।
चलो कोई बात नहीं आज अपना भोजन भी इनको दे देता हूँ।
आनंद बोला प्रभु जी आज मै तो भूखा ही रह गया लेकिन कोई नहीं आपको देखकर मुझे बड़ा ही अच्छा लग रहा है परन्तु अगली बार आप एकादशी के दिन केवल बता के आना ताकि उसी तरह से भोजन बना दूंगा।
और हां प्रभु जी थोड़ा जल्दी भी आ जाना। श्री राम जी उसकी इस प्रकार की बात पर बड़े आनंददित हुए और प्रसाद ग्रहण करने बाद चले गए।
अगली एकादशी तक भोला मानस सबकुछ भूल गया। उसको लगा की प्रभु जी रोज ही आते होंगे।
फिर एकादशी आयी और उसने गुरूजी से कहा " गुरूजी इस बार थोड़ा ज्यादा आनाज देना क्योंकि प्रभुजी सीता माता जी के साथ आये थे।
गुरुजी मुस्कुराए और मन ही मन सोचने लगे की भूख के मारे बावला हो गया होगा। कोई नहीं तुम और अनाज ले जा। इस बार उसने तीन जनो का भोजन तैयार किया और भजन गाने लगा
आओ भोग लगाओ प्यारे राम जी …
भिलनी के बैर सुदामा के तंडुल
रूचि रूचि भोग लगाओ प्यारे राम जी
आओ मेरे राम जी, भोग लगाओ जी
मेरे प्रभु श्री राम जी आइए, श्रीराम जी आइए मेरे भोजन का भोग लगाओ जी....
और इधर देखो श्री राम जी लीला भी बहुत ही निराली इस बार वो अपने भाई लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न को भी लेकर आ गए।
आनंद को जैसे चक्कर ही आ गया ये क्या प्रभुजी तो बिना बताये इतने सारे को साथ लेकर आ गए
और सोचने लगा की आज भी मुझको भूखा ही रहना पड़ेगा। उसने जैसे तैसे सबको भोजन करवाया और उंसको सहज में एकादशी का व्रत हो गया।
फिर जब अगली बार एकादशी आयी तो आनंद ने गुरुजी से कहा "रामजी अकेले तो आते नही उनको जो भी मिल जाता हैं वो सबको साथ मे लेकर आ जाते हैं इसलिए इस बार आप मुझे बहुत सारा अनाज दे देना क्योंकि शायद प्रभुजी को भोजन पूरा नही हो पाता।
गुरुजी सोचने लगे कि कहीं ये अनाज को बेच तो नही देता और उंसको छुप कर देखने की सोचने लगे। गुरुदेव ने उसको बहुत से अनाज दे दिया।
इस बार आनंद ने सोचा कि पहले भोजन नही बनाउंगा जब सब आ जाएंगे तब ही भोजन तैयार होगा।
और भजन गाने लगा
आओ भोग लगाओ प्यारे राम जी …
भिलनी के बैर सुदामा के तंडुल
रूचि रूचि भोग लगाओ प्यारे राम जी
इस बार तो रामजी पूरे दरबार के साथ आ गए । आनंद ने कहा कि मै अकेले तो भोजन नही बना पाऊंगा इसलिए सब मिलकर भोजन तैयार करते हैं। रामजी ने सबको आज्ञा दे फिर क्या लक्ष्मण माता सीता सभी रसोई की तैयारी करने लग गए। माता सीता आटा बेलने लग गयी। गुरुजी भी आ गए थे पर उनको केवल आनंद दिख रहा था और अनाज।
गुरुजी ने कहा कि क्यों राम जी नही आये सारा अनाज तो इधर ही पड़ा हैं। "नही गुरुजी देखो न भोजन की तेयारी चल रही हैं।
गुरुजी बोले मुझको तो कुछ भी नही दिख रहा हैं।
आनंद ने प्रभु से कहा, आप गुरुजी को क्यों नहीं दिख रहे हैं ? प्रभु बोले : मैं उन्हें नहीं दिख सकता। बोला : क्यों , वे तो बड़े पंडित हैं, ज्ञानी हैं विद्वान हैं उन्हें तो बहुत कुछ आता है उनको क्यों नहीं दिखते आप ? प्रभु बोले , माना कि उनको सब आता है पर वे सरल नहीं हैं तुम्हारी तरह। इसलिए उनको नहीं दिख सकता.... आनंद ने गुरुजी से कहा, गुरुजी प्रभु कह रहे हैं आप सरल नहीं है इसलिए आपको नहीं दिखेंगे, गुरुजी रोने लगे वाकई मैंने सब कुछ पाया पर सरलता नहीं पा सका तुम्हारी तरह, और प्रभु तो मन की सरलता से ही मिलते हैं। प्रभु प्रकट हो गए और गुरुजी को भी दर्शन दिए। इस तरह एक भक्त के कहने पर प्रभु ने रसोई भी बनाई।