एक बार मथुरा के निकट एक गाँव में एक छोटी लड़की रहती थी। वृन्दावन के निकट होने के कारण वहां से बहुत लोग ठाकुर जी के दर्शन को जाते थे। जब वो छोटी बच्ची 5 साल की हुई तो उसके घर वाले बांके बिहारी जी के दर्शन के लिए जा रहे थे। उस समय वाहन बहुत कम थे। उनको दर्शन को जाते देख उस छोटी लड़की ने कहा "पिताजी मुझे भी अपने साथ ठाकुर जी के दर्शन के लिए ले चलो" पिताजी ने कहा बेटा अभी आप छोटे हो इतना चल नहीं पाओगे थोडा बड़ा हो जाओ तब तुम्हें साथ में ले चलेंगे। कुछ समय बीता जब वो 7 साल की हुई तो फिर घरवालों का किसी कारणवश वृन्दावन जाना हुआ। फिर उस बच्ची ने कहा "पिताजी अब मुझे भी साथ ले चलो ठाकुर जी के दर्शन के लिए।" लेकिन किसी कारणवश वो उसको न ले जा सके। बच्ची के मन में ठाकुर जी के प्रति बहुत प्रगाढ़ प्रेम था। वह बस उनका मन से चिंतन करती रहती थी और दुखी भी होती थी की ठाकुर जी के दर्शन को न जा सकी आज तक। गाँव में उसके सभी सहपाठी प्रभु जी के दर्शन कर चुके थे। जब वो सब ठाकुर जी के मंदिर और उनके रूप का वर्णन करते तो इस बच्ची के मन में दर्शन की ललक और भी बढ़ जाती।
समय अपने पंख लगा के बढ़ता गया। कही अवसर मिले जाने के पर शायद उसके भाग्य में ठाकुर जी के दर्शन नहीं लिखे थे। जब वो 17 साल की हुई तो उसके पिताजी कोे उसके विवाह की चिंता हो गयी। उसका विवाह तय हो गया सयोंग कहो य उसकी ठाकुर जी के प्रति प्रेम उसका विवाह वृन्दावन के सबसे पास वाले गाँव में हो गया।
वह लड़की बहुत प्रसन्न थी की अब तो उसको भी ठाकुर जी के दर्शन होंगे। जब विवाह संपन्न हुआ तो वह अपने ससुराल गयी। फिर रस्म निभाने के लिए वापस अपने घर आई।
एक दो दिन बाद वो और उसके पति जब वापस अपने घर जा रहे तो बीच में यमुना नदी पर उसके पति बोला
"तुम कुछ देर इधर बैठो में यमुना में स्नान करके आता हूँ।''
उस लड़की का चिंतन अब ठाकुरजी की तरफ चला गया और सोचने लगी की कब ठाकुर जी के दर्शन होंगे। उस लड़की ने लंबा घूँघट निकाल रखा है, क्योकि गाँव है, ससुराल है, और वही बैठ गई। फिर वो मन ही मन विचार करने लगी 'कि देखो!
ठाकुरजी की कितनी कृपा है। उन्हें मैंने बचपन से भजा और दर्शन के लिए लालायित थी, उनकी कृपा से अब मेरा विवाह श्रीधाम वृंदावन में ही हो गया।
पर मैं इतने सालों से ठाकुरजी को मानती हूँ पर अब तक उनसे कोई भी रिश्ता नहीं जोड़ा ?” फिर सोचने लगी "ठाकुरजी की उम्र क्या हो सकती है ? “मेरे हिसाब से लगभग 17 वर्ष के ही होंगे, मेरे पति 21 वर्ष के है, उनसे थोड़े ही छोटे होंगे, इसलिए वो मेरे पति के छोटे भाई की तरह हुए तो मेरे देवर की तरह, लो आज से ठाकुरजी मेरे देवर होंगे।” अब तो ठाकुरजी से नया सम्बन्ध जोड़कर उसको बहुत प्रसन्नता हुई और मन ही मन ठाकुरजी से कहने लगी “ठाकुर जी ! आज से मै आपकी भाभी और आप मेरे देवर हो गए, पर वो समय कब आएगा जब आप मुझे भाभी - भाभी कह कर पुकारोगे ?”
जब वो किशोरी ये सब सोच ही रही थी तभी एक किशोरवस्था का सवांला सा लड़का उधर आ गया और कहने लगा “भाभी-भाभी” लडकी अचानक अपने भाव से बाहर आई और सोचने लगी “वृंदावन में तो मै नई हूँ ये भाभी कहकर कौन बुला रहा है ?” वो नई थी इसलिए घूँघट उठाकर भी नहीं देखा कि गाँव के किसी बड़े-बूढ़े ने देख लिया तो बड़ी बदनामी होगी । जब वह बालक बार - बार कहता पर वह उत्तर ही न देती। बालक उसके और पास आया और कहा “ भाभी! नेक अपना चेहरा तो देखाय दे”। अब वह सोचने लगी “ अरे ये बालक तो बहुत जिद कर रहा है।” इसलिए उसने और कस के अपना घूँघट पकड़कर बैठ गई कि कही घूँघट उठाकर देख न ले।
"भाभी आपने ये पर्दा क्यों कर रखा हैं हम तो आपके देवर है।
उस लड़की ने उसको एक नज़र देखा फिर कहा "नही हम आपको नहीं जानते" और घूँघट ओढ़ लिया।
"नहीं नहीं हम आपको जानते है आप उस गाँव के हो न बस कुछ ही दूर में हमारा घर है। भाभी अपना चेहरा तो दिखाओ।
"जब कह दिया न हम आपको नहीं जानते, इनको पता चल गया तो बहुत मार पड़ेगी"
"भाभी आप तो नाराज़ हो रही हो, देखो हम आपके इतने प्यारे देवर है आप से मिलने के लिए इतनी दूर तक आ गए और आप हो की बात भी नहीं कर रहे हो। क्यों आप हम से मिलना नहीं चाहते थे।
और इतना कहते ही उस लड़के ने घूंघट खींच लिया और चेहरा देखा और भाग गया। थोड़ी देर में उसका पति भी आ गया, उसने अपने पति को सब बात कही।
पति बोला – “चिंता मत करो,वृंदावन बहुत बड़ा थोड़े ही है ,कभी भी किसी गली में लड़का मिल गया तो हड्डी - पसली एक कर दूँगा। फिर कभी भी ऐसा नहीं कर सकेगा। तुम्हे जब भी और जहाँ भी दिखे, मुझे जरुर बताना।” फिर दोनों घर चले गए।
कुछ दिन बाद उसकी सासु माँ ने अपने बेटे से कहा - “बेटा ! देख तेरा विवाह हो गया अब बहू मायके से भी आ गई, पर तुम दोनों अभी तक बाँके बिहारीजी के दर्शन के लिए नहीं गए कल तुम जाकर बहू को ठाकुरजी के दर्शन कराकर लाना।” अगले दिन दोनों पति और पत्नी ठाकुर जी के दर्शन के लिए मंदिर जाते है। मंदिर में बहुत भीड़ थी, लड़का कहने लगा - “ देखो ! तुम स्त्रियों के साथ आगे जाकर दर्शन करो, में आता हूँ”। जब वो आगे गई पर घूंघट नहीं उठाती उसको डर लगता कोई बडा-बुढा देखेगा तो कहेगा की नई बहू घूँघट के बिना ही घूम रही है। बहूत देर हो गई तो पीछे से पति ने आकर कहा “अरी बाबली! ठाकुरजी सामने है, घूँघट काहे को नाय खोले, घूँघट नाय खोलेगी तो प्रभुजी के दर्शन कैसे करेगी ?”
अब उसने अपना घूँघट उठाया और जो बाँके बिहारी जी की ओर देखा तो बाँके बिहारी जी कि जगह वो ही बालक मुस्कुराता हुआ दिखा तो वह चिल्लाने लगी “सुनिये ओजी जल्दी आओ ! जल्दी आओ !”
पति जल्दी से भागा - भागा आया और बोला “क्या हुआ ?” लड़की बोली “ उस दिन जो मुझे भाभी-भाभी कह कर भागा था न वह लड़का मिल गया”।
पति ने कहा 'कहाँ है? अभी उसे देखता हूँ बता तो जरा”। उसने ठाकुर जी की ओर इशारा करके बोली – 'ये रहा, आपके सामने ही तो है'। उसके पति ने जब देखा तो अवाक ही रह गया और वही मंदिर में ही अपनी पत्नी के चरणों में गिर पड़ा और बोला “तुम बहुत ही धन्य हो वास्तव में तुम्हारे ह्रदय में सच्चाभाव ठाकुरजी के प्रति है। हम इतने वर्षों से वृंदावन में है पर आज तक हमें उनके दर्शन नहीं हुए और तेरा भाव इतना उच्च है कि ठाकुर जी ने तुझे दर्शन दे दिए।”
ठाकुर जी से सच्ची प्रेम से जो भी रिश्ता करो तो ठाकुर जी उसे जरूर निभाते है, जैसे इस कहानी में ठाकुरजी ने देवर का सबंध निभाया।