श्री दमा बाई जी अत्यंत उच्च कोटि की संत थी।आपकी संत सेवा में बड़ी ही रुचि थी।संतो के मुख से भगबद गुणानु बाद सुनते सुनते आपके मन में अभिलाषा हुई कि प्रभु कृपा करके दर्शन दे,अपनी मनमोहनी झांकी दिखा कर मुझे कृतार्थ करे।इनकी निरंतर अभिलाषा को देखकर प्रभु ने कईबार संत वेश में इन्हें दर्शन भी दिया पर ये भगवान् को पहचान नहीं सकी।जब इनकी व्याकुलता अधिक बढ़ गई तो फिर
भगवान् एक संत का वेश धारण करके आये।आपने बड़े ही प्रेम और श्रद्धा के साथ उन्हें भोजन कराया फिर पूछा ! महराज जी कृपा करके मुझे बताइये की इस युग में भगवान् के दर्शन किसी को होते या नहीं।संत वेश धारी प्रभु ने कहा होते हैं अवश्य होते हैं आपको भी कईबार हो चुके हैं।एक बार तो आप बहुत सारे पकवानो को परोसती चली गयी वे प्रभु प्रेम बस खाते चले गये न उनकी तृप्ति होती थी न भोजन ही कम होता था। दूसरी बार जब तुम बीमार थी तो प्रभु ने नाड़ी देखकर तुम्हे औषधी दी।तब आपको आश्चर्य हुआ ऐसी रहस्य मयी बातो को सुनकर दमाबाई ने सोचा ये भगवान् ही हैं।दमाबाई ने फिर उन संत रूपधारी प्रभु से कहा
कि आप को ये सब घटना आपको कैसे मालूम हुई ,और उन्होंने भगवान का हाथ पकड़ना चाहा तभी वे अदृश्य हो गये।अबतो दमाबाई जी बिरह से व्याकुल हो गयी तब प्रभु ने इन्हें स्वप्न मे दर्शन देकर समझाया की मैं सदा ही तुम्हारे पास ही हूँ।और तुम्हारी सेवा से संतुष्ट हूँ ।प्रभु की अमृतमयी बानी को सुनकर आपको परमानन्द हुआ।।