बाबा फरीद एक सूफी संत थे, एक बार एक व्यक्ति उनके पास आया और कहा की मुझ में बहुत से बुरी आदत है उनको मैं कैसे छोड़ू ? बाबा फरीद ने उनकी बात सुनी और उनको कोई उत्तर नहीं दिया और उठकर खड़े हो गए और उनके कुछ दूर ही एक खम्बा था वो उसके पास जा कर जोर जोर से पुकारने लगे मुझे छुड़ाओ छुड़ाओ बचाओ बचाओ।
जो आदमी उनके पास आया था वो हैरान हो गया। वो सोचने लगा में तो इनके पास अपना प्रश्न का उत्तर के लिए आया था सोचा था कोई महान संत होंगे जैसे इनकी प्रसंसा सुनी थी। पर ये क्या ये तो पागल जैसे हरकत कर रहे हैं। मुझे तो कोई विक्षिप्त लगते हैं।
बाबा फरीद ने कहा इधर आओ, तुम मुझे बचा लो, उस आदमी ने कहा आपको छुड़ाने की कोई जरुरत नहीं आपने खम्भा पकड़ा हुआ है, खम्भा ने आपको नहीं।
बाबा फरीद ने कहा फिर जब तुम इतने बुद्धिमान हो तो मुझ से क्यों प्रश्न पूछने आये हो ? भईया मेरे आदतें तुम्हे पकड़ ही नहीं सकती, तूने इन आदतों को पकड़ के रखा हैं। जब तुझे इतनी अक्ल हैं की मुझको खम्बा ने नहीं बल्कि खम्बा को मैने पकड़ा है तो तुम्हे कौन पकड़ सकता हैं। तुम्हारी इन आदतो में कोई स्वार्थ होगा उनको देखो भाई।
छोड़ो ये सब आदतें। पूरानी है, छूटते-छूटते ही छूट जायगी, आप होश रखा तो जरुर छूट जायेगी। कोई भी आदत हमें नहीं पकड़ सकती। देखो हम सब कितने अजीब हैं हम कहते, कैसे छोड़े, इन्ह आदत ने पकड़ लिया है।अगर हम अपने स्वाभाव में जाग जाय तो कौन हमें रोक सकता हैं।