फक्कड बाबा…एक फक्कड बाबा थे, किसी गाँव के बाहर वृक्ष के नीचे बैठे थे. दिखने में हट्टे-कट्टे थे. बाबा बोले जा रहे थे

By heygobind Date January 28, 2019

एक फक्कड बाबा थे, किसी गाँव के बाहर वृक्ष के नीचे बैठे थे. दिखने में हट्टे-कट्टे थे. बाबा बोले जा रहे थे “वाह, क्या बात हैं! अगली भी कुछ नहीं और पिछली भी कुछ नहीं, कुर्बान जवां बिचली पे. उसी समय उधर से तीन युवतियां जा रही थी. बीचवाली युवती ने सोचा ये बाबा क्या बोलते हैं. बाबा अपनी ही मस्ती में मस्त होकर वही वाक्य दोहराए जा रहे थे. उस बिचली नवविवाहिता सुन्दरी ने जाकर अपनी पति को बोला की “साधु ऐसा-ऐसा बोल रहे थे. अगली और पिछली युवती ने भी उसकी बात का समर्थन कर दिया. अब तो गावंवाले लोग आये और सब मिलकर उस बाबा के पास गए.

गावंवाले लोगो ने कहा “बाबा क्या बोल रहे थे तुम इन्ह युवतियों को देखकर.

बाबाजी बोले “अरे, क्या बोल रहा हूँ!  अगली भी कुछ नहीं और पिछली भी कुछ नहीं, कुर्बान जवां बिचली पे.

उनमें से बिचली का पति था वह बोला “बिचली तो मेरी पत्नी थी.

“अरे चल! बिचली तो सबकी हैं.

“ऐ बाबा! क्या बोलते हो?

एक बुजुर्ग ने कहा “बाबा की बात को समझना पड़ेगा, बाबा बिचली माने क्या?

बाबा बोले “अरे! बिचली सबकी हैं, किसी ने संभाली तो संभाली, नहीं तो गयी हाथ से.”

“बाबा! कौन सी बिचली! वह तो इसकी औरत हैं.

“इसकी औरत कौन बिचली वह तो सबकी हैं”

बाबा! ऐसा मत बोलो.

अरे, चोरी का माल है क्या! बिचली तो सबकी होती हैं

बाबा! हम लोग कुछ समझे नहीं.

बाबा बोले “अगली कुछ नहीं मतलब बचपन की जिन्दगी बेवकूफी में गुजर जाती हैं. पिछली भी कुछ नहीं मतलब बुढ़ापे में शरीर साथ नहीं देता, न योग करने का सामर्थ्य, न ध्यान भजन होता हैं. बिचली हैं जवानी! उसीमें निष्काम कर्म करो, जप करो, ध्यान करो, अपने को खोजो, अपने आत्मा को पाओ, अपने “मै” को खोजो. इसीलिए बोलता हूँ बिचली तो बिचली हैं.

“ज्यों केले के पात में, पात पात में पात..

त्यों संतन की बात में, बात बात में बात....

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