कालिदास जी एक बार किसी बाजार में कुछ कार्य से गए. चारो और बाज़ार लगा हुआ था बहुत भीड़-भाड़ थी. उसमे एक महिला एक मटका लेकर कुछ बेच रही थी. उसके पास कुछ प्यालियाँ भी थी. वो जोर जोर से आवाज़ दे रही थी की पाप ले लों, पाप ले लों. और कुछ लोग उसके पास आते और उसको पैसे देकर वो पाप ले लेते. कालिदास जी को बहुत आश्चर्य हुआ ये क्या पाप है.
कालिदास जी उसके पास जाकर महिला से प्रश्न किया ”आप ऐसा क्या बेच रही हो?
उस महिला ने उत्तर दिया की “महाराज! मै पाप बेच रही हूँ.
कालिदासजी आश्चर्य चकित हो गए और कहा ” क्या पाप तुम्हारे मटके में?
उस महिला ने कहा “ हाँ जो पाप हैं वो मेरे इस मटके में हैं.
किस प्रकार के पाप हैं आपके मटके में कालिदास जी ने कहा
उस महिला ने कहा “ इसमें आठ प्रकार के पाप हैं और मै सबसे आवाज देकर कहती हूँ की ये पाप है और इसको मै बेचती हूँ. फिर भी लोग अपने रुपए देकर इस पाप को ले जाते है|
कालिदास जी ने आश्चर्य से कहा “रुपये देकर भी लोग पाप को खरीद रहे हैं? महिला ने कहा “ हाँ, महाराज जी! रुपये से लोग पाप को खरीद रहे हैं | “ कालिदासजी ने कहा “आपके इस मटके में किस प्रकार के आठ पाप हैं?
महिला ने कहा “बुद्धि का नाश, क्रोध, अपने यश का नाश, पत्नी और बच्चों के साथ अन्याय और अत्याचार, चोरी, असत्य दुराचार, अपने पुण्य का नाश और स्वास्थ्य का नाश भी.... इस प्रकार के आठ पाप इस घड़े में है और मै इनको बेच रही हूँ|
कालिदासजी जी को बहुत ही कौतुहल हुआ की यह तो बहुत ही अनोखी बात हैं | किसी भी साहित्य में नहीं लिखा की मटके में आठ पाप होते है | कालिदासजी जी ने कहा “इसमें ऐसा क्या है?”
महिला ने कहा “ गुरूजी! इसमें शराब है शराब! “कालिदास जी उस महिला की कुशलता पर अति प्रसन्न हुए और कहा की “आपको धन्यवाद है! शराब में ये आठ पाप है इसको तू जानती है और सत्यपूर्वक कह भी रही हैं की मैं पाप को बेच रही हूँ “ऐसा कहकर बेचना अपने आप में बहुत अच्छी बात हैं और लोग ले भी जाते है. उनको धिक्कार है इस प्रकार लोग शराब को पीकर हरि का विस्मरण करते हैं!
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