पांच प्रेत…पृथु एक भक्त ब्राम्हण था। वह रोज हरिभक्ति में तल्लीन रहता था। वह प्रभुजी को बहुत प्रेम करता था

By heygobind Date January 28, 2019

पृथु एक भक्त ब्राम्हण था। वह रोज हरिभक्ति में तल्लीन रहता था। वह प्रभुजी को बहुत प्रेम करता था और उसका मन सदैव उनमे लगा रहता था। वह सभी प्राणियों में उस प्रभुजी का ही  चिंतन करता था। समय-समय पर वह तीर्थ यात्रा के लिए जाता रहता था। एक समय जब वह तीर्थयात्रा के लिए गया हुआ था तो एक सुनसान क्षेत्र में जहाँ कोई भी दूर-दूर तक दिखाई न दे ऐसे स्थान में पहुंचा। वहां चारो और सुनसान और सन्नाटा छाया हुआ था। तभी उनकी नजर पांच भयानक और डरावनी (प्रेत bhut pret) आकृतियों पर पडी। जिनको देखकर ह्रदय में भय उत्पन हो जाये।

उस ब्राहमण ने धैर्य को धारण करके उन्ह प्रेतों से कहा “तुम सब कौन हो? और तुम्हारे रूप इतने विकराल क्यों हैं?”

उन्ह प्रेतों ने उस ब्राम्हण को इतना निडर देखकर कहा- हम सब कई दिनों से भुख-प्यास से पीड़ित है और हम सबका ज्ञान, विवेक ख़त्म हो गया हैं ।

हमको कुछ नहीं सूझता की हम किधर जा रहे हैं क्या कर रहे हैं क्योंकि हमको यहाँ कोई दिखाई ही नहीं दिया जिसको हम ग्रास कर सके। इसलिए हम सब बहुत कष्ट में हैं।

हम में इसका नाम पयुरसित, उसका का नाम सुचिमुख, और जो तीसरा हैं उसका नाम शीघ्रग, एवं उसका नाम रोधक और अंतिम का नाम लेखक हैं।

उन्ह ब्राम्हण ने सबके नाम सुनकर कहा “ आप सब लोगों का नाम इतना अलग विचित्र क्यों हैं ?”

उन्ह प्रेतों ने कहा “मनुष्य योनी में था, तो मै स्वय तो स्वादिष्ट भोजन कर लेता था और बाकि सब को बासी (पायुषित) भोजन देता था, इस कारण से मेरा नाम पायुषित पड़ गया।

इसका नाम सुचिमुख है क्योकि इससे जब भी कोई भोजन मांगता था तो ये उसको मारता था इसलिए इसका मुख सुई जैसा हो गया और इसका नाम सूचिमुख हो गया अब ये भोजन मिलता हैं तो भी नहीं खा पाता।

जो तीसरा हैं उसका नाम शीघ्रग इसलिए पड़ गया क्योंकि जब भी कोई इससे भोजन मांगता तो ये शीघ्रपूर्वक वहां से भाग जाता।

ये चौथा दरवाजा बंद करके स्वादिष्ट भोजन कर लेता था, इसलिए इसका नाम नाम रोधक रखा गया।

उनमे से पांचवे से कोई जब भी कुछ मांगता था तो वह जमीन पर कुछ न कुछ लिखने लग जाता इसलिए इसका नाम लेखक रखा गया।

उन्ह ब्राम्हण ने कहा “तो आप लोग फिर क्या-क्या खाते हो ?”

फिर सब प्रेतों ने बड़े ही लज्जित और शर्मशार होकर कहा हम सब बहुत ही अपवित्र भोजन खाते हैं, हम इधर उधर कही भी नहीं जा पाते जो घर बहुत अपवित्र होता हैं, जहाँ भगवान् की पूजा नहीं होती उधर हम सब जाते हैं।“

फिर उन्ह प्रेतो नें ब्राम्हण से कहा- “हे ब्रम्हाण देव! अब आप हमारा उद्धार करें। हम सब बहुत ही दुखी हैं और आपकी वाणी और दर्शन से से हमें बहुत सुख मिल रहा है। कृपा करके बताइये की किस कर्म से प्रेत योनि मिलती है ?”

उन्ह हरि भक्त ब्राम्हण ने कहा “जो दुसरो का अहित करते हैं, बुरे कर्मों में लिप्त रहते हैं, मांस, शराब और व्याभिचार का सेवन करते हैं वे ही प्रेत योनि में जाते हैं। प्रेत योनि में कोई कहीं अलग से नहीं आता बुरे कर्म ही हमको ले जाते हैं।

उस हरिभक्त ब्राम्हण के दर्शन, श्रवण और उनकी कृपा से उन्ह सब प्रेतों का उद्धार हुआ।

उन्ह ब्राम्हण की बात संपन्न होते ही नगाडों की आवाज गूंजने लगी, आकाश से फूलों की वर्षा हुई और साथ में पांच विमान भी धरती में उतर गए।

उसके बाद आकाशवाणी हुई “ब्रम्हाण आपकी कृपा से और आपके साथ वार्तालाप करने एवं इनके कुछ पुण्यकर्मों के कारण इन्ह पांचों प्रेतों को दिव्य लोक की प्राप्ति होती हैं।“

और फिर देखते ही देखते उन्ह पांचो प्रेतों का शरीर दिव्य हो गया और वे सब दिव्यलोक चले गए।

कथा श्रोत-‘पद्मपुराण’ www.heygobind.com

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