परम् प्रेम | राम सीता और लक्ष्मण वन से जा रहे थे। वन का मार्ग संकरा था केवल एक ही ही मनुष्य चलने लायक छोड़ था।

By heygobind Date January 28, 2019

राम सीता और लक्ष्मण वन से जा रहे थे। वन का मार्ग संकरा था केवल एक ही ही मनुष्य चलने लायक छोड़ था। धनुषवान हाथ में लेकर श्रीरामजी सब से आगे चल रहे थे, उनके पीछे लक्ष्मणजी धनुषवान् लेकर जा रहे थे। लक्ष्मणजी की श्रीरामजी में अत्यंत भक्ति और प्रीति थी। वे चाहते थे की उन्हें श्रीरामजी का दर्शन हर पल हो। पर वे क्या करे? उनके और श्रीरामजी के बीच में सीताजी चल रही थी। अतः रामजी के दर्शन नहीं हो पा रहे थे। माँ सीताजी के ध्यान में यह बात आ गयी और ज्योंही उनके मन में करुणा उत्पन्न हुई उसी समय रास्ता चलते चलते कुछ हट गयी और बोली "अच्छा अब दर्शन कर लो। तब कहीं लक्ष्मणजी नेत्र भरकर अपनी ईष्ट मूर्ति के दर्शन कर सके। इसी तरह जीव और ईश्वर के बीच में भी मायारूपी सीता रहा करती है। उसने जीवरूपी लक्ष्मण पर कृपा करके यदि राह नहीं छोड़ दी और अपना पाश नहीं तोड़ दिया यो जीव को रामरूपी ईश्वर का दर्शन नहीं होगा यह जानिए। हम सबको भी प्रभुजी में बहुत प्रीति और भक्ति होनी चाहिए।

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