एक चांदनी रात में एक शहर में एक बड़ी अचरजवाली घटना घटी। कुछ नवयुवकों ने बहुत ही शराब पी और नशे में मद-मस्त होकर अपने अपने घर से बाहर निकल गए और चांदनी रात को देखकर उनके मन में ख्याल आया की क्यों न नौका विहार किया जाये।
चांदनी रात बहुत ही सुन्दर और नशे से लिप्त थी। वे सब गीत गाकर नदी के किनारे में पहुंच गये। नाव उधर ही बाँध के मछुए अपने घर जा चुके थे। रात भी आधी हो चुकी थी।
सभी युवक नाव में सवार हो गए। उनमे से एक ने पतवार उठा ली और उसको खेना शुरू कर दिया। फिर वे सब बारी बारी से रात भर नाव खेते रहे। और कुछ युवक नींद भी ले रहे थे जब सुबह की मंद मंद हवाओं ने उनको सचेत किया। तब उनको कुछ नशा कम होने लगा तो उनमें से एक युवक ने पूछा, अरे भाई हम किधर आ गये होगे। न जाने आधी रात तक हम किधर के किधर पहुँच गए होंगे। कोई ज़रा नीचे उतर कर देखो की हम किस दिशा में जा रहे हैं और कहां पहुंच रहे हैं?”
उनमे से एक नीचे उतरा, और वो जोर जोर से हंसने लगा। उस ने सबसे कहा ‘‘मित्रों ! आप सब भी उतर आओ , हम किधर भी नहीं पहुंचे है। हम जिधर से चले थे हम अभी भी उधर ही हैं १० कदम भी आगे नाव नहीं गयी। ” सबने कहा ऐसे कैसे?
उन्ह सबको बहुत ही हैरानी हुई। रात भर सबने खूब पतवार भी चलायी और अभी तक किधर भी नहीं पहुंचे। जब सब नीचे उतरे तो सबको पता चल गया, की नाव की जो जंजीरें थी वो किनारे से बाँध कर रखी थी और उसको तो किसी ने खोला ही नहीं।
ऐसे ही हमारा जीवन भी, नाव खेने, जीवन पतवार खेने में चला जाता हैं और आखिर में पता चलता हैं की हम जिधर से शुरू की उधर ही हैं। मरते समय मनुष्य अपने आपको उधर ही पाता है जिधर स्वयं को, जन्मा हुआ था। हमे पूरा जीवन सांसारिक होकर जीते हैं और आखिर में उसी किनारे पर रह जाते हैं जिधर से हमने यात्रा शुरू की थी। उस दौड़ धूप का क्या हुआ, आखिर अपने आपको नहीं जाना तो फिर क्या हमारा जीवन सफल हुआ ? सारा जीवन एक सपना हो गया। हमने भी यात्रा तो शुरू कर दिन सांसारिक जीवन की पर अपने नाव को किसी किनारे पर बाँध कर।