तुलसीदास जी और चोर….तुलसीदास जी एक बार रात्रि को आ रहे तभी उनको कुछ चोर मिल गए।

By heygobind Date January 28, 2019

तुलसीदास जी एक बार रात्रि को आ रहे तभी उनको कुछ चोर मिल गए।  तुलसीदास जी को देखकर चोरों ने उनसे पुछा " आप कौन हो ओर इतनी रात को क्या कर रहे हो ? तुलसीदास जी  ने कहा "मेरे भाई जो तुम हो वो ही मै  हूँ। उन सब चोरों ने उनको भी अपना जैसा मान लिया की ये भी चोर हैं।  चलो सही हैं अब हम सब मिलकर चोरी करते हैं। तुलसीदास जी ने कहा ठीक है चलो। चोरों ने एक घर में सेंध लगाते हुए तुलसीदास जी से कहा " आप इधर ही खड़े रहो ओर देखना की कोई नहीं आये जैसे कोई आ जाये तो हमें खबर दे देना।  चोर जैसे ही चोरी करने लगे तुलसीदास जी ने अपने झोले से शंख निकालकर उसको बजाना शुरू कर दिया।  जब चोरों ने शंख की आवाज सुनी तो वो सब डर गए ओर बाहर आकर देखा की तुलसीदास जी हाथ में शंख लेकर खड़े हैं। 

तुलसीदास जी से चोरों ने कहा की आपने क्यों शंख को बजाया, जब इधर कोई नहीं था? 

"आप सभी ने तो कहा था की जब हम चोरी करें तो तुम्हे कोई दिखाई दे तो बता देना इसलिए मैने खबर कर दी आप लोगो को। 

चोरो ने कहा " लेकिन इधर तो कोई नहीं है" 

जब मेने अपनी चारो ओर  देखा तो मुझे श्री रामचन्दर जी दिखे। मैने सोचा उन्होंने आप लोगों को चोरी करते हुए देख लिया ओर चोरी करना पाप हैं इसलिए वो आप लोगों को जरुर दंड देंगे इसलिए मैने आप को सूचित कर दिया। 

लेकिन  रामजी आपको किधर दिखाई दिए" एक चोर ने कहा ।

आप कहो, प्रभुजी का वास किधर नहीं  है? वे तो हर जगह हैं, अंतरायमी हैं और उनका हर ओर वास है। हमको तो वो हर एक ओर दिखाई दे रहे फिर कोई निश्चित स्थान कैसे कहूँ ?' तुलसीदास जी ने जवाब दिया।

चोरों ने जब ये सुना तो उनको लगा की ये चोर नहीं उच्च कोटि के संत है ओर  उनके सानिध्य में आकर उनका चोरी का भाव चला गया।  तुलसीदास जी से क्षमा मांगी और श्री राम जी शरण में आ गए।

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