गोबर की टिपकी | एक समय कान्हा गौशाला में खेल रहे थे। गौशाला में एक गोपी गोबर के तसले भरकर बार-बार ले जा रही थी,

By heygobind Date January 30, 2019

एक समय कान्हा गौशाला में खेल रहे थे। गौशाला में एक गोपी गोबर के तसले भरकर बार-बार ले जा रही थी, गोबर के उपले बनते है और फिर उन्हीं पर फिर रसोई बनती है। गोपी कान्हा से बोली " कन्हैया ! नेक मेरो यो तसला तो सिर पर रखवाय दे। कान्हा "अरी ओ गोपी! मै काय धरवाऊ, तू आपसे रख ले ना। एकतो मेरी शिकायत मोरी मैईया से करती है और अब काम भी करवाती है। गोपी बोली – देख लाला! तोसे ऐसेही काम न लूँगी बदले में माखन का लौना भी तो तुझे दूँगी। गोपी जब गोबर रखकर फिर आई। जो माखन की बात बालकृष्णजी ने सुनी तो झट से पास आ गए और बोले ठीक है गोपी जब तू इतना कह रहे है तो कर देते है पर बदले में माखन देना पड़ेगा अब बता तेरा गोबर का पात्र सिर पर उठवा दूँ। फिर बालकृष्ण ने गोबर का पात्र गोपी के सिर पर रखवा दिया। गोपी गोबर रख कर फिर आई। कान्हा बोले – गोपी! अब माखन का लौना तो दे। गोपी बोली –अरे लाला! अभी तो तुमने एक ही बार तो रखवाया है। अभी तो बहुत बार रखवाना है। कान्हा बोले - अच्छा गोपी! ठीक है फिर हर बार का एक माखन का लौना लूँगा। कान्हा बोले - ठीक है। अब तक पांच बार रखवाया, तो पांच लौना दे देना। गोपी बोली - का चार बार ही हुआ है कृष्ण क्यों झूठ बोल रहे हो। कान्हा बोले "देख गोपी! ऐसे काम नहीं चलेगा" गोपी बोली "अच्छा लाला! ऐसा करते है कि जितने बार तू रखवाएगा हरबार गोबर की एक टिपकी तेरे माथे पर रख दिया करुँगी। कृष्ण बोले - अच्छा ठीक है। अब जब कान्हा एक बार उठवाते तो गोपी गोबर से उनके माथे पर एक टिपकी रख देती। ऐसा करते करते बहुत बार हो गया और कान्हा का सारा चेहरा तो गोबर की टिपकियो से भर गया। और सबसे अंत में सारी टिपकी आपस में मिल गई। फिर कृष्ण बोले '"गोपी अब टिपकी गिनकर उतने मुझे माखन के लौने दे दो। गोपी बोली "लाला तेरे माथे पर तो कोई टिपकी नहीं है, सारा चेहरा तो गोबर से बर गया, अब मै कैसे गिनू ? कान्हा बोले देख गोपी "तूने ही देने का कहा था और टिपकियाँ भी तूने ही रखी। अब देने की बारी आई तो टालने लगी। गोपी बोली अरे कान्हा जब टिपकी है ही नहीं तो अब गिनूँगी कैसे ? बालकृष्ण बोले वो सब मुझे नहीं पता मुझे तो बस गिनकर माखन के लौने दे दे। फिर गोपी कान्हा की ऐसी बात सुनकर जितनी बार कृष्णजी ने गोबर का पात्र उठवाया था उतने ही माखन के लौने कृष्णजी को दे दिए। इस तरह हमारे बाल कृष्ण और गोपियों की ये प्रेम भरी लीलाये चलती रहती थी। वास्तव में वे श्री भगवान जिनके लिए स्वयं ब्रह्मा महेश और सब देवता हाथ बंधे खड़े रहते है जो भ्रकुटी मात्र टेडी कर दे तो प्रलय आ जाए। जिन्हें श्रुतियाँ में भी नेति-नेति कहकर हार जाती है, नारद जी आदि ब्रह्वादियो ने भी जिनका पार नहीं पा सकते उन कृष्णा को गोपियाँ कैसे नाच नचा रही है. सेस गनेस महेस दिनेस सुरेसहु जाहि निरंतर गावे, जाहि अनादि अनंत अखण् अछेद अभेद सुबेद बतावैं॥ नारद से सुक व्यास रहे, पचिहारे तू पुनि पार न पावैं, ताहि अहीर की छोहरियाँ,छछिया भरि छाछ पै नाच नचावैं॥

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *