गोपी का प्रेम                                एक गोपी यमुनातट पर बैठकर प्राणायाम और ध्यान कर रही थी। वहाँ पर नारदजी वीणा को बजाते हुए आये तो नारदजी बड़े ही ध्यान से देखने लगे की गोपी कर क्या रही है?

By heygobind Date January 30, 2019

एक गोपी यमुनातट पर बैठकर प्राणायाम और ध्यान कर रही थी। वहाँ पर नारदजी वीणा को बजाते हुए आये तो नारदजी बड़े ही ध्यान से देखने लगे की गोपी कर क्या रही है? क्योंकि उनको समझ नहीं आया की वज्र में भी कोई प्राणायाम और ध्यान कर सकता है, काफी देर देखने से भी उनको समझ नहीं आया। वे गोपी के पास गए और पूछा " देवी आप ये क्या कर रहे हो ? मुझको समझ नहीं आ रहा की कोई इधर भी ये सब करता है प्रभुजी की वज्र भूमि में और इतने नियमों के साथ। आपको ऐसी क्या जरुरत आन पड़ी की आपको ध्यान और प्राणायाम करना पर रहा है। गोपी बड़े ही भाव और प्रेम से बोली " हे नारद जी ! मै जब भी कोई काम करती हूँ तो मुझसे वो काम ही नहीं हो पाता हर वक्त वो यशोदा का छोरा आँखों से ध्यान से निकलता ही नहीं है, जब घर को लीपती हूँ तो गोबर में भी वही दिखता है, लीपना तो वही छूट जाता है और श्री कृष्ण के ध्यान में ही डूब जाती हूँ, रोटी बनानी लगती हूँ तो जैसे ही मै आटा गूदती हूँ तो नरम - नरम आटा में भी कृष्ण के कोमल चरणों का आभास होने लगता है, क्या करूँ आटा तो वैसा का वैसा ही रखा रह जाता है और में फिर कृष्णजी की याद में खो जाती हूँ, अब कहाँ-कहाँ तक आपको बताऊ नारदजी, जब जल भरने यमुना नदी जाती हूँ तो यमुनाजी में, जल की गागर में, रास्ते में और हर जगह कहीं न कहीं वो नंदलाला ही दिखायी देता है। मै बहुत परेशान हो गई की अब कृष्ण को अपने ध्यान से निकालने के लिए ही ध्यान लगाने बैठी हूँ। कैसा प्रेम है, जिसके लिए न जाने कितने लोग तरस जाते, योगी योग करते है, ध्यान करने वाले ध्यान करते है। धन्य है गोपी जिसको प्रभु के प्रति इतना प्रेम है की कृष्ण को अपने ध्यान से निकालने के लिए उसको ध्यान करना पड़ रहा है ।

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