किसी शहर में एक सास और बहु रहते थे। सास श्री कृष्ण जी की भक्त थी। सासु माँ रोज ठाकुर जी की सेवा करती थी। स्नान करने के पश्चात ठाकुर जी को नहलाती, उनकी पूजा अर्चना करती और भोग लगाती थी, उसका ये नित्य नियम था। सासु जी इस कारण से कहीं घूमने या तीर्थ में भी नहीं जा पाती।
एक दिन सर्दी के मौसम में सासु माँ को बहुत ही जरुरी कार्य से कुछ दिन के लिए बाहर जाना पड़ गया था।
अब सासु माँ को बड़ी चिंता हुई की ठाकुर जी को साथ में ले जाने से तो उनकी पूजा अर्चना में विघ्न होगा और ये बहु सही से सेवा कर भी पाएगी की नहीं इसको तो कोई अक्कल हैं नहीं।
सासु माँ ने बहु को ठीक से समझाया की ठाकुर जी की सेवा किस प्रकार करनी हैं।
सबसे पहले स्नान करके तीन बार घंटी बजाकर ठाकुर जी को जगाना हैं। उनको स्नान करवाना, ठाकुर जी को कपडे पहनना हैं। उनका शृंगार करना और फिर ठाकुर जी दर्पण दिखाना हैं।
और जब ठाकुर जी का हँसता हुआ मुख देख लो उसके बाद ठाकुर जी को भोग लगाना हैं।
इस प्रकार सासु माँ ने बहु को सब समझाया। फिर सासु माँ अपनी यात्रा में चली गयी। बहु ने पहले दिन ठाकुर जी की उसी प्रकार सेवा करनी शुरू कर दी, सबसे पहले स्नान करके तीन बार घंटी बजाकर ठाकुर जी को जगाया। ठाकुर जी को स्नान करवाया उनको नए वस्त्र पहनाये। उनका अच्छे से शृंगार किया।
और फिर उनको दर्पण दिखाया।
उसको याद आया की सासु माँ ने उसको कहा था की दर्पण मे ठाकुरजी का हँसता हुआ मुख देखने के बाद ही उनको राजभोग लगाना।
लेकिन दर्पण मे ठाकुर जी का हँसता हुआ मुख उसको नहीं दिखा उसको लगा की शायद मेरी सेवा में कोई कमी रह गयी ।
बहुरानी ने दुबारा से ठाकुरजी को स्नान और श्रृंगार किया और फिर दर्पण दिखाया।
फिर इस बार भी ठाकुर जी का हँसता हुआ मुख उसको नहीं दिखा।
फिर उसको अपनी गलती दिखी और फिर उसने ठाकुर जी को नहलाया और श्रंगार करने के बाद उनको दर्पण दिखया, लेकिन ये क्या इस बार भी उसको उनका हँसता हुआ मुख नहीं दिखा।
इस प्रकार बहु ने ठाकुरजी को १३ बार स्नान करवाया दिया ।
लेकिन प्रत्येक बार दर्पण में ठाकुर जी हँसता हुआ मुख नही दिखा।
जब बहु ने १४वी बार फिर से ठाकुर जी को स्न्नान करने की तैयारी की तो ठाकुर जी ने अपने इस सरल भक्त पर प्रसन्न हो गए और सोचने लगे की आज अगर इसको हँसता हुआ मुख नही दिखा तो आज ये पुरे दिन इसी प्रकार नहलाती रहेगी।
फिर उसने ठाकुर जी को नहलाया और श्रंगार करने के बाद उनको दर्पण दिखया और फिर बहु ने इस बार ठाकुर जी को दर्पण दिखाया तो प्रभु जी अपनी मंद-मंद मनमोहनी मुस्कान से मुस्कराने लगे।
अब जाकर बहु को संतोष हुआ, इतनी देर के बाद अब ठाकुर जी ने मेरी सेवा स्वीकार करी।
बहु का अब तो रोज ये नियम बन गया ठाकुर जी का मुस्कराने का ।
इस प्रकार सेवा करते करते दिन बीत गए और सासु माँ वापस आ गयी और ये सेवा उसने बहु से ले ली।
सासुमाँ ने ठाकुरजी से क्षमा याचना की इतने दिन मुझे पता हैं की आपकी सेवा सही से नहीं हुई होगी उसके लिए मुझे माफ़ कर देना अब मै आ गयी और आपकी सेवा में कोई भी कमी नहीं आने दूंगी।
उसी समय सासु माँ को अहसास हुआ की जैसे ठाकुर जी ने मुस्कराते हुए कहा की मैय्या आपकी इस सेवाभाव में किसी भी प्रकार की कमी नहीं हैं लेकिन मैय्या आप दर्पण दिखाने की सेवा तो आपकी बहु को करने देना क्योंकि इस बहाने मै मुस्करा तो लेता हूँ।
सासु माँ भी अपनी बहु पर बहुत ही प्रसन्न हुई और उसको दर्पण दिखाने की सेवा दे दी।