सबसे पहले वो कारण जो आपकी साधना में रुकावट लाती हैं, जिन्ह विकारों से आप गिरते हो, चिंतन के कारण आपका पतन होता हैं, उन्ह विघ्नों को दूर करने के लिए प्रातकाल सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नानं आदि करने के बाद पूर्व की ओर मुख करके बैठ जाओ. आपके जो भी इष्ट हैं उनका नाम स्मरण करने के बाद अपने मन ही मन बातें करें. दस से पन्द्रह बारी गहरे श्वास लों और हरी ॐ का गुंजन करते हुए अपनी दुर्बलताओं को मन ही मन सामने लाये और ॐ नाम के प्रहार से उसको खत्म करें.
जब आप से गलती होती हैं तो उसको याद करके संकल्प लों की अब ये गलती दुबारा नहीं होगी. सुबह नहा धोकर पूर्व की ओर मुख करके या बिस्तर में ही शरीर को खींचकर ढीला छोड़ने के पश्चात मन में संकल्प करो की “मुझ से जो जो गलतियाँ हुई है, जैसे ज्यादा बोलने की, काम विकार की या लोभ क्रोध आदि आदि. जिसके कारण भी हमारी साधना में उन्नति नहीं हो पाती.
आपका जो भी नाम हो उसको लेकर संकल्प करें. जैसे आपका नाम मोहन हैं तो कहो “देख मोहन ! आज कम से कम बोलना. ज्यादा बोलने के कारण वाणी का प्रभाव कम हो जाता हैं. और ज्यादा बोलने से कुछ न कुछ अनावश्यक शब्द निकल जायेंगे और झूठ आदि भी बोलने की आदत आ सकती हैं. इस प्रकार मन को समझा दे. इसी प्रकार ज्यादा खाने या फिर कामविकार का या कोई अन्य दोष हो तो उसको निकाल दो. इस प्रकार नित्य संकल्प ले जब तक आपकी ये आदत नहीं जाती.
साधक का जीवन बहुत ही कठिन होता हैं, पग-पग पर कोई न कोई विकार सामने आ जाता हैं. इसलिए साधक किस प्रकार जीवन जीये, क्या नियम का पालन करें और अपने अंदर की कमी को देखे की किस कारण वह भगवत प्राप्ति से दूर हो रहा हैं. और किस प्रकार वो भगवान की नजदीक आ सकता हैं, इस प्रकार का गहन चिंतन करना चाहिए और बीती हुई बात को बुला के एक नया जीवन इस प्रकार संकल्प से साथ शुरू करना चाहिए.