श्री बाँके बिहारीजी के मन्दिर में केवल शरद-पूर्णिमा के दिन ही श्री श्रीबाँके बिहारीजी वंशी धारण करते हैं। केवल श्रावण तीज के दिवस ठाकुरजी को झूले पर बैठते हैं एवं जन्माष्टमी के दिन उनकी मंगला–आरती होती हैं।

By heygobind Date January 30, 2019

श्री बाँके बिहारीजी के मन्दिर में केवल शरद-पूर्णिमा के दिन ही श्री श्रीबाँके बिहारीजी वंशी धारण करते हैं। केवल श्रावण तीज के दिवस ठाकुरजी को झूले पर बैठते हैं एवं जन्माष्टमी के दिन उनकी मंगला–आरती होती हैं। जिसके दर्शन बड़े ही सौभाग्यशाली व्यक्तियों को ही प्राप्त होते हैं। और चरण-दर्शन केवल अक्षय तृतीया के दिवस ही होता हैं। चरण-कमलों का जो दर्शन करता है उसके तो भाग्य का उदय हो जाता है। श्री स्वामी हरिदासजी संगीत के बहुत ही प्रसिद्ध गायक एवं तानसेन के संगीत गुरु थे। वे ठाकुर जी के भक्त थे। एक दिन प्रातः काल स्वामीजी ने देखा की उनके बिस्तर पर कोई रजाई ओढ़कर सो रहा है। स्वामी जी ने कहा “मेरे बिस्तर पर कौन सो रहा हैं? वहाँ पर श्री बिहारीजी स्वयं सो रहे थे । श्री हरिदासजी के शब्द सुनते ही प्रभु जी निकल भागे। परन्तु वे अपने चुड़ा, वंशी को बिस्तर पर ही रखकर चले गये। स्वामीजी वृद्ध अवस्था में दृष्टि-जीर्ण होने के कारणवश उनको कुछ नजर नहीं आया। उसके पश्चात श्री बाँके बिहारीजी मन्दिर के पुजारी ने जब प्रभु जी के मन्दिर के कपाट खोले तो उन्हें श्री बाँकेबिहारी जी के पालने में चुड़ा और वंशी नजर नहीं आयी और मन्दिर का दरवाजा भी बन्द था। बड़े ही आश्चर्य चकित होकर पुजारीजी निधिवन में श्री स्वामीजी के पास आये और स्वामीजी को को चुड़ा और वंशी की बातें बतायी। श्री स्वामीजी बोले कि प्रातः काल कोई मेरे पंलग पर सोया हुआ मिला। वो जाते वक्त कुछ तो वहीं छोड़ गया हैं। तब पुजारीजी ने प्रत्यक्ष देखा कि स्वामी जी के पंलग पर श्री बाँकेबिहारी जी की चुड़ा और वंशी विराजमान हैं। स्वामी जी को विश्वास हो गया कि श्रीबाँके बिहारीजी रात को रास करने के लिए निधिवन जरुर आते हैं। इसी कारण से प्रातःकाल श्री बिहारीजी की मंगला आरती नही होती है। कारण रात्रि में रास करके बाद बिहारीजी आराम करते है। अतः आरती करके उनके प्रातःकाल के शयन में बाधा नहीं डालते।

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