ब्रजदर्शन (काम्यवन धाम):- प्रेम की कोई भाषा नही होती ना प्रेम का कोई सीमित दायरा होता है.. ऐसे ही इस ब्रजधाम में रस का कोई अन्त ही नही, यह तो हमारी पात्रता पर निर्भर है की हम इसको कितना पा सकते हैं। हमारे युगल सरकारजी की प्रेमभरी लीला में सभी रस आपको मिल जायेंगे इन्ही रसो के दिव्याति दिव्य दर्शन है हमारे ब्रजधाम में। इस रस को बहुत से संतो ने अपनी अपनी भक्ति के अनुसार प्राप्त किया। चलो ब्रजदर्शन की इस शाब्दिक यात्रा को शुरू करते हैं....पिचासी वर्ष की अवस्था हो गयी पर नन्द घर नन्द आनंद नाय भयो..बाबा ने पण्डित नकू कुण्डली दिखाई...पण्डितजी बोले “बाबा दोष तो कछु नाय आप ऐसो करना, तीर्थ यात्रा को संकल्प ले लेयो”
नन्दबाबा ने संकल्प ले लिया ठाकुर जी प्रकट है गये। जब ठाकुर जी बडे है गये। सब ही लीला चल रही थी। एक दिन बाबा को अपने संकल्प की याद आयी। बाबा ने सब ब्रज-वासी बुलाये ओर अपने मन कु बात कही। सब ब्रजवासी बोले बाबा सोचनो काह है करो सब तैयारी हम सब चलिंगे तीर्थ करने को।
“वो सब तो ठीक है भईया पर मेरो मन है या तीर्थ के विषय मै लाला कू हू बताय दै। ठाकुरजी बुलवाये गए।
“हाँ बाबा काह बात है”
“लाला मैने संकल्प लियो जा दिन मोहे सन्तान प्राप्ति है जायेगी वा दिन मै ओर तुमारी मैया अपनी सन्तान कू लेके सभी तीर्थ स्थान न के दर्शन करूगों।
“जरूर करो बाबा। “
“लाला याहि के लिये तो हम सब ब्रज-वासी न कू बुलाओ, ये सबहु चलवे के ताहि बोल रहै हैं।
ठाकुर जी मुस्कुराये “बाबा आप की एक तो उमर-नाय तीर्थ यात्रा करवे की, दूसरे सब ब्रज-वासी न कू तीर्थ यात्रा पै लै चलवो हू मुश्किल है। बाबा एक बात मानोगे।
“हाँ लाला बोल”
“बाबा सब तीर्थ तो इधर ब्रज मै ही हैं, आप सब यहीं सब तीर्थ कर लेयो, हम्बे।
“बडो ग्यानी है हमारो यो लाला, याये पतो है सब तीर्थ यही पै है। एक बुजुर्ग ब्रज-वासी बोलो “हाँ हाँ दादा। हम इतने बड़े है गये हमने तो यो देखो नाय, या नेक से ने सब तीर्थन के दर्शन कर लिये।
“हाँ बाबा। मैने करै है, ओह भईया मनसुखा। तू बतावे कहे ना वा दिन जब हम गाय चरावे गये काम्यवनधाम तब करे ना।
मनसुख बोला “हाँ बाबा। कन्नु सही कह रह्यो है, मनसुखा ने लीला मै सहायक बनते हुऐ कहा
हमारे गोविंद के आगे किसी की चली है जो यहा किसी की चलती।
“लाला ई तो बता। वहा पै कोन-कोन से तीर्थ हैं।
“सब हैं बाबा.....बदरीनाथ, केदारनाथ, यमुनोत्री, गंगोत्री, चन्दन वन, लक्ष्मण झूला, सेतुबंध रामेश्वर, विश्वनाथ, नर-नारायण पर्वत, विन्ध्याचल पर्वत, मैनाक पर्वत, धवलगिरि पर्वत, हरि पर्वत, सुगन्धि शिला, मालती वन, श्याम कुण्ड, कृष्ण कुण्ड, तप्त कुण्ड, देव सरोवर आदि आदि बाबा ये सब दर्शन काम्यवन धाम के चौदह कोस मै हैं
ठाकुर जी सब ब्रजवासीयो को लेकर काम्यवन धाम पधारे ओर योगमाया का आव्हान किया। योग माया प्रकट हुई ओर गोविंदजी की आज्ञा से इस भूमि को तीर्थ का स्वरूप प्रदान किया। इसलिए आज भी जब हम इन स्थानो के दर्शन करते हैं तो वही अनुभूति होती है जैसे किसी को बदरीनाथ या केदारनाथ जाके होती है।
जय हो मेरे प्रभु जी, हमारे गोविंद तो यही सब तीर्थ ले आये सबको। राधै राधै