एक परिवार में सास और बहु थे। जो सास थी वो रोज ठाकुरजी की पूजा करती थी बड़े ही नियम और ध्यान से। शरद ऋतू में एक बार सासु माँ को किसी कार्य के कारण घर से बाहर जाना पड़ा। माता जी ने सोचा अब मैं कुछ दिन घर से बाहर जा रही हूँ और ठाकुर जी को साथ भी नहीं ले जा सकती, अब में ये सेवा कुछ दिन के लिए अपनी बहु को दे देती हूँ। लेकिन मेरी बहु को कुछ अक्कल भी नहीं हैं पता नहीं ठाकुर जी की पूजा सेवा किसी करेगी पर देना तो इसको ही पड़ेगा।
बड़े ही बेमन से उसने बहु को समझाया की ठाकुरजी की पूजा कैसे करनी है। सबसे पहले ठाकुर जी को लाड लडाना है और फिर तीन बार घंटी बजाकर सुबह ठाकुर जी को जगा देना। फिर उनको मंगल भोग लगना। उसके पश्चात ठाकुरजी को अच्छे से स्नान करना, फिर उनको वस्त्र अलंकार और श्रृंगार करना और अंत में ठाकुर जी को दर्पण दिखा देना। जब दर्पण में ठाकुर जी को हँसता हुआ मुख देख लो तो उनको राजभोग लगाना। इस प्रकार बहु को समझा कर सासु माँ यात्रा में चली गई।
बहु ने ठाकुरजी की सेवा उसी प्रकार की जिस प्रकार माता जी ने समझाया था। बहु ने सबसे पहले ठाकुर जी को जगाया, नहला दिया फिर अच्छे से वस्त्र पहना के श्रृंगार किया और दर्पण दिखा दिया। सासु माँ ने कहा था की जब ठाकुरजी का हँसता मुख देखकर ही उनको राजभोग लगाना। जब बहु ने ठाकुरजी को दर्पण दिखया तो उसमें उनका हँसता मुख नहीं दिखा। बहु को बड़ा ही आश्चर्य हुआ। बहु ने सोचा की शायद मुझ से कोई गलती हो गई तभी ठाकुरजी का हँसता मुख नहीं दिख रहा। बहु ने ठाकुर जी को नहलाया श्रृंगार किया और फिर दर्पण दिखा दिया। लेकिन फिर भी ठाकुर जी का हँसता मुख नहीं दिखा बहु को दर्पण में। फिर बहु ने सोचा कोई न कोई कमी रह गयी बहु ने ठाकुर जी को नहलाया श्रृंगार किया और फिर दर्पण दिखा दिया। लेकिन फिर भी ठाकुर जी का हँसता मुख नहीं दिखा। ऐसे करते हुए बहु ने ठाकुर जी पन्द्रह बार स्नान करा दिया। लेकिन हर बार ठाकुर जी का हँसता मुख नहीं दिखा। अब 16वीं बार बहु ने ठाकुर जी के स्नानं की तैयारी की और फिर ठाकुर जी ने विचार किया की इसको यदि हँसता मुख नहीं दिखा तो आज ये पुरे दिन स्नान करवाती रहेगी इस सर्द मौसम में। बहु ने ठाकुर जी को नहलाया श्रृंगार किया और फिर दर्पण दिखाया तो ठाकुरजी ने अपना मनमोहक हँसता हुआ मुख से मंद-मंद मुस्कान में हँसे। अब बहु को संतोष हुआ की ठाकुर जी ने मेरी पूजा स्वीकार कर ली।
रोज बहु का या नियम बन गया और ठाकुर जी हँसते। अब तो जब बहु ठाकुरजी की सेवा करने के लिए पूजा घर में जाती तो ठाकुर जी मुस्करा देते। कुछ दिन बाद सासु माँ आ गई, सासु माँ ने ठाकुर जी क्षमा याचना मांगी की मेरी बहु से कोई कमी रह गई तो माफ़ कर देना अब में वापस आ गई मै बहुत ही ध्यान से आपकी सेवा करुँगी। तभी ठाकुर जी बोले मैया आपकी सेवा में कोई कमी नहीं है, आप तो बहुत अच्छी सेवा करते हो पर मैया दर्पण दिखाने की सेवा तो आप अपनी बहु से करवाना क्योंकि इसी बहाने में हंस लेता हूँ।
जय हो मेरे ठाकुर जी की