नटखट कान्हा को रंगे हाथ पकड़ने के लिए एक बार एक गोपी ने एक तरकीब निकाली।
उसने जो माखन की मटकी हैं उसके साथ एक घंटी बाँध दी ताकि जैसे ही कान्हा मटकी को हाथ लगाएगा वैसे ही घंटी बज जायेगी। और मै उसको रंगे हाथ पकड लूँगी।
कान्हा और उसके साथी सभी मिलकर आज माखन चुराने उसी गोपी के घर आ गए।
श्रीदामा की नज़र उस घंटी पर पड़ गई और उसने कान्हा को संकेत से समझा दिया।
कान्हा ने अब को निश्चिन्त रहने का संकेत किया और घंटी को फुसफसाते बोले "
" घंटी महारानी देखो हम माखन चुराने आये है तुम बिलकुल भी मत बजना।
घंटी ने बोला "ठीक है प्रभु, नहीं बजूँगी"
कान्हा ने सब सखा मित्रो को माखन खिलाया पर घंटी नहीं बजी
बाल कृष्ण ने ख़ूब माखन चुराया अपने सखाओं को खिलाया - घंटी नहीं बजी।
बंदरो को भी खिला दिया पर घंटी बिलकुल न बजी
और जैसे ही आखिर में प्रभु कृष्ण जी ने माखन से भरा हुआ हाथ अपने मुख पे लगाया वैसे ही घंटी बज गई।
घंटी के आवाज को सुनते ही सब गोपी भाग के आ गई और कान्हा को पकड़ लिया। सभी सखाओ में भागदौड़ मच गई। सबके सब भाग गए पर कान्हा जी रह गए।
और कान्हा जी ने कहा थोड़ी देर रुक जाओ इस घंटी के खीर खबर तो ले लूँ , जिसने मुझे पकड़वाया,
"क्यों घंटी क्या हुआ जब तुझे कहा की मत बजना तो फिर काहे को बज गई, मैने मना किया था न ?
घंटी ने क्षमा मांगते हुए कहा "प्रभु जी जब आपके सखाओ ने माखन खाया तो में नहीं बजी, आपने बंदरो को भी बहुत खिलाया पर मै नहीं बजी, लेकिन जब आप ने माखन खाया तो मुझको तो बजना ही पड़ेगा न, मेरा तो स्वभाव ही है जब भी मंदिर में पुजारी जी ठाकुर को भोग लगाते हैं तो घंटिया बज जाती हैं....... इस कारण प्रभु जी में अपने आदत के कारण बज गई।
जय हो ठाकुर जी की