कोई हमारे घर पर आता है तो हम उसके लिए अच्छे पकवान दाल चावल पूरी हलवा आदि सब कुछ तो दे सकते है पर उसको हम भूख नहीं दे सकते। भूख तो उसको स्वयं की होनी चाहिए। उसी प्रकार प्रभु प्राप्ति की उत्कट अभिलाषा स्वयं की होनी चाहिए।
उत्कट अभिलाषा होने पर भगवत्प्राप्ति में देरी का कारण ही नही है। आप ईश्वर को पाने को तैयार हो और ईश्वर आपको अपनाने को, फिर इसमें देरी कहाँ रह गयी और क्यों?
आपने बहुत मन से जप तप भजन आदि किया, परन्तु आपके मन में यह संदेह रह गया की भगवान् मिलते हैं कि नही मिलते। मेरे अंदर तो बहुत पाप है मै तो पापी हूँ, मै अधिकारी नहीं हूँ ऐसा भाव यदि आपके अंदर है तो प्रभुजी आपको नहीं मिलेंगे।
और यदि ये भाव रहा की मै जैसा भी हूँ आपका हूँ और आप मुझे जरूर मिलोगे और आप मिलने चाहिए तो भगवान् मिल जायेंगे। हम सबको केवल अपनी चाहना बढ़ानी चाहिए ।